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हिन्दी प्रेमाख्यानकों का शिल्प : १२९ १०. किसो दैवी शक्ति या गनी द्वारा नायिका की प्राण रक्षा : चन्दायन में चाँद को दो-दो बार साँप डंसता है, परन्तु गुनी आकर उसके प्राणों की दोनों बार रक्षा करता है । मंझनकृत मधुमालती को कथानक-रूढ़ियां
१. मंगलाचरण रूप में स्तुति, मुहम्मद साहब, चारमित्र आदि की प्रशंसा । दुर्जन-निन्दा, सज्जन-प्रशंसा।
२. कनेगिरगढ़ नामक नगर का वर्णन ।
३. सन्तानहीन राजा सूरजभान का एक तपस्वी की १२ वर्ष की सेवा के बाद सन्तानोत्पत्ति ।
४. भविष्यवाणी : राजा को पुत्रोत्पन्न हुआ, उसके विषय में ज्योतिषियों ने भविष्यवाणियाँ की।
५. राजकुमार को शय्यासहित अप्सराओं द्वारा उठा ले जाना . राजकुमार मनोहर जब लगभग १५ वर्ष के हुए तो अप्सराओं ने उनके सौन्दर्य के अनुरूप कन्या दिलाने को सोचकर उन्हें मधुमालती के शयनागार में उनकी शय्यासहित पहुँचा दिया।
६. पूर्वानुराग : मनोहर और मधुमालती ने एक-दूसरे को देखकर - पूर्वभव से परिचित होने का स्मरण कर लिया और प्रेमासक्त हुए। ___-_७. अभिज्ञान : दोनों ने आपस में मुद्रिकाएं बदल ली और सो गए।
८. शय्याओं का पुनः यथास्थान पहुंचाना : संयोग के बाद अप्सराओं ने पुनः राजकुमार को उनको शय्यासहित घर पहुंचा दिया। — ९. नायक का योगी वेष धारण करना : मनोहर ने मधुमालतो को खोज करने के लिए योगी का वेष धारण किया। - १०. जलयान का टूटना और नायक का बचना : कुमार मधुमालती की खोज में चलते-चलते समुद्रतट पर पहुँचे और सदल-बल जलयान पर बैठे । जलयान समुद्र की भंवर में पड़कर टूट गया । उसमें से कुमार दैवी-दृष्टि से बच गए और एक घने जंगल के पास समुद्र के किनारे जा लगे। - ११. असम्भावित घटना द्वारा सहायता : वन में आगे बढ़ने पर मधुमालती की सखी राजकुमारी से भेंट और उसके द्वारा मधुमालती का पता बताना।