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१२८ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
उद्धार या प्रेम, १४. गणिका द्वारा दरिद्र नायक का स्वीकार और उसकी माता द्वारा तिरस्कार, १५. भरण्ड और गरुड़ आदि के द्वारा प्रिय युगलों का स्थानान्तरण, १६. पिपासा और जल की खोज में जाते समय असुरदर्शन और प्रियावियोग, १७. ऊजड़ नगर, १८. प्रिया की दोहद कामना की पूर्ति के लिए प्रिय का असाध्य साधन का संकल्प, १९. शत्रु-संतापित सरदार को उसकी प्रिया के साथ शरण देना और फलस्वरूप युद्ध इत्यादि । नीचे कतिपय प्रेमाख्यानकों की कथानक रूढ़ियों अथवा कथाभिप्रायों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत है :
चन्दायन ( दाऊद ) की कथानक रूढ़ियाँ
१. ईश्वर - वंदना : मुहम्मद साहब, चारमीत, शाहेवक्त दिल्ली सुलतान फीरोजशाह की प्रशस्ति आदि ।
२. वस्तु-वर्णन के अन्तर्गत नगरं तथा उसमें अमराइयों, सरोवरों, मन्दिर, नगर की खाईं, दुर्ग आदि का वर्णन ।
३. पुरुषत्वहीन पति को छोड़कर परपुरुष के साथ भागना । ४. परस्त्री को अन्य पुरुष का भगा ले जाना : चाँद लोरक को भागने के लिए तैयार करती है ।
५. रूप - गुणजन्य आकर्षण : चन्दायन में रूपचन्द ने जब बाजिर से चाँद की प्रशंसा सुनो तो वह व्याकुल हो उठा और उसे प्राप्त करने की चेष्टा में लग गया ।
६ नायिका का अपहरण : लोरक चाँद को मंदिर में बाजार चला जाता है तभी टूटा अवसर का लाभ उठाता है को सम्मोहित करके उसका अपहरण कर लेता है ।
७. पत्नी के सतीत्व की परीक्षा : लोरक हरदीपाटन से लौटने पर मैना के सतीत्व को परखता है ।
८. प्रवासी पति के वियोग में पत्नी का क्षीण हो जाना : मैना लोरक के विरह में ( निसदिन झुरवइ आस बैआसी) रात-दिन झुरसती है ।
९. नायक का योगी के वेष में भटकना : चन्दायन में विरस्पत के कथनानुसार लोक जोगी बनकर मंदिर में जा बैठा । वह एक वर्ष तक मंदिर की सेवा और चाँद के प्रेम की कामना करता रहा ।
१. डा० हजारीप्रसाद द्विवेदी, हिन्दी साहित्य का आदिकाल, पृ० ७४-७५.
छोड़ स्वयं
और चाँद