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________________ १२६ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक चन्दायन में लोरक ने चन्दा को पाने के लिए योगी का वेश धारण किया तो पद्मावत में रतनसेन पद्मावती के लिए योगी बना। मधुमालती में मनोहर ने अपनी प्रेयसी को पाने के लिए योग रमाया और चित्रावली में सूजान भी योगी बनता है। इस तरह के प्रायः ही समान प्रसंग प्रेमाख्यानकों के कथा-नियोजन में मिलते हैं। अपने पूर्ववर्ती अपभ्रंश चंरितकथाकाव्यों की पृष्ठभूमि में प्रणीत हिन्दी प्रेमाख्यानकों में कथाभिप्रायों की भी कमी नहीं है। वास्तव में किसी भी कथा के कथानक को गति . प्रदान करने में 'अभिप्राय' अथवा कथानकरूढ़ि अद्वितीय साधन है। . वर्तमान में हम जिस 'कथाभिप्राय' शब्द का प्रयोग करते हैं साहित्यशास्त्र में उसे 'कविसमय' कहा गया है। राजशेखर ने अशास्त्रीय, अलोकिक और परम्परागत जिन अर्थों को कवि उपनिबन्धित करते हैंकविसमय की संज्ञा दी है।' 'कथाभिप्राय' के सन्दर्भ में यह स्पष्ट कर देना आवश्यक प्रतीत होता है कि अभिप्राय सर्वथा असत्य या अशास्त्रीय नहीं होते। प्रतीकरूप में प्रयुक्त अभिप्राय अपना निजी मल्य रखते हैं। मूलतः 'कथाभिप्राय' का प्रयोग हिन्दी में 'मोटिफ' के लिए किया जाता है। शिप्ले के अनुसार 'अभिप्राय' वह शब्द .या ढाँचे में ढला विचार है जो समान परिस्थितियों में या समान मनःस्थिति उत्पन्न करने के लिए किसी एक कृति अथवा विभिन्न कृतियों में पुनः-पुनः आता है। इस परिभाषा को युक्तिपूर्ण कहना संगत होगा । 'अभिप्राय' कथानक में घटनाक्रम के अनुसार कथा में नया मोड़ लाने के लिए अथवा चमत्कार दिखाने के लिए भी प्रयुक्त किये जाते हैं। 'अभिप्राय सबसे छोटा, पहचान में आने वाला तत्त्व है जो कि एक सम्पूर्ण कहानी का निर्माण कर देता है।" १. अशास्त्रीयमलौकिकं च परम्परायातं यमर्थमुपंनिबन्धन्ति कवयः स कवि समयः ।-काव्यमीमांसा, पृ० १९०. 2. 'Motif-A word or a pattern of thought which recurs in a similar situation or to evoke a similar mood within a work or in various works of a genre.'-T. Shiple, Dictio naryof World Literature, p. 274. 3. The motif is the smallest recognizable element that goes to make up a complete story.-Ibid., p. 247.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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