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१२२ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
कहानी लिखने का दम भरता है तो मैं उसे झक्को कहूंगा।' यदि कथाकार कथानियोजन को स्वीकारता है तो उसकी कोई कमजोरी नहीं है । कविता, मुक्तक या गीत बिना नियोजन के एक उद्गाररूप में सामने आ सकते हैं। फिर भी उसमें किसी न किसी बाह्य या अन्तस्थ सूक्ष्म नियोजना को स्वीकार करना ही होगा। जॉयस केरी का मत है कि लेखक लिखने के पूर्व अपने से पूछता है कि 'मुझे कैसे चरित्रों की आवश्यकता है ? प्रमुख पात्र किस प्रकार के हों ? पृष्ठभूमि क्या हो ? . सामान्य योजना क्या हो ? यहाँ तक कि यदि वह कथा प्रारम्भ करते समय कथावस्तु का नियोजन नहीं करता तो भी अपने पात्रों के चुनाव में तथा क्रियात्मक प्रणाली के लिए एक सामान्य विचार तो स्थिर . करता ही है।
कथा की परिभाषा के सम्बन्ध में प्रबन्ध के प्रास्ताविक में रुद्रट की मान्यता का मैंने उल्लेख किया था। वे मानते हैं कि कथा के प्रारम्भ में इष्ट देव-गुरु आदि को नमस्कार करने के बाद अपने कुल का और कर्ता का उल्लेख करना चाहिए। कथा का उद्देश्य सकल शृङ्गार से युक्त कन्याप्राप्ति है। अस्तु, इस परिभाषा के अनुसार प्रेमाख्यानकों को देखने से लगता है कि अधिकांश ने अपनी कथा-नियोजन की यही प्रणाली रखी है । पुहकर ने अपनी रचना रसरतन को 'दंतकथा' कहा है। जैसा कि इस संदर्भ में पहले कह दिया गया है कि कथा का नियोजन काल्पनिक आधार पर किया गया है अथवा ऐतिहासिक या इतिहास और कल्पना के
1. "...If an artist boasted to me of having written a
story without a previously settled design, but by inspiration, I should call him a lunatic."-Novelist on the
Novels. 2 "He asks himself to start with 'what character shall I
need ? What kind of leading characters? What background ? What general scheme ?' Even if he does not design a plot to begin with, he forms, and has -to form, a general idea of working out in action of his choice of characters”. —Joyce Cary, Art and Reality, p. 96.