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________________ ११८ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक ६. उपसंहार-फल को प्राप्ति । पउमचरिय में चरित के अवयवों की संख्या सात मानी गई है और इन अवयवों की पूर्णता के ऊपर ही चरित को सम्पूर्ण स्थिति निर्भर करती है। वे सात अवयव इस प्रकार हैं : १. स्थिति-देश, नगर, ग्राम आदि का वर्णन । २. वंशोत्पत्ति-वंश, माता-पिता, ख्याति आदि का वर्णन । ३. प्रस्थान-विवाह, उत्सव, राज्याभिषेक प्रभृति का वृत्तांत। . ४. रण-राज्यविस्तार या राज्य-संरक्षण के लिए युद्ध। . ५. लवकुशोत्पत्ति-साधारण क्षेत्र में या अन्य चरितो में सन्तानो . त्पत्ति। ६. निर्वाण-संसार में विरक्ति,,आत्मकल्याण में प्रवृत्ति एवं धर्मः देशना श्रवण या वितरण आदि का निरूपण। ७. अनेक भवावली-अनेक भवावलियों का वर्णन, भवान्तर या - प्रासंगिक कथाओं का सघन वितान । कथा के उपर्युक्त अंग-विवेचन से यह स्पष्ट है कि कथा को पूर्णता और अपूर्णता इन्हीं कथा-तत्त्वों अथवा अंगों पर निर्भर करती हैं । हिन्दी साहित्य के समीक्षकों ने कथा के कथानक, पात्र, कथोपकथन या संवाद, वातावरण, भाषा-शैली और उद्देश्य छः तत्त्व माने हैं। कहानी, नाटक, उपन्यास और कथाकाव्यों की समीक्षा की कसौटी के लिए भी यही छ: तत्त्व स्वीकृत हैं । कथा के निर्माण के लिए कथानक का होना अनिवार्य शर्त है । स्पष्ट है कि कथावस्तु ही नहीं होगी तो कथा का अस्तित्व हो खतरे में पड़ जायेगा। कथावस्तु के लिए कथानियोजन का चातुर्य आवश्यक है । यह कथाकार की क्षमता पर निर्भर करता है । साहित्य समाज का दर्पण इसीलिए कहा गया है कि लेखक गतिमान् संसार से ही कथावस्तु का नियोजन करता है और उसे समाज के सम्मुख प्रस्तुत कर देता है । कथानक में घटनाओं और परिस्थितियों की कुतुहलपूर्ण योजना ही कथा की महत्त्वपूर्ण विशेषता होती है । अपभ्रंश साहित्य के कथाकारों ने भविसयत्तकहा, पउमचरिउ, करकंडुचरिउ, जसहरचरिड़ आदि रच १. वसुदेवहिण्डी, प्रका०-जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर, पृ० १. '
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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