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________________ हिन्दी प्रेमाख्यानकों का शिल्प : ११७ मासा, उपालंभ, मंगल, विआहलो, प्रहेलिका, फागु, धमाल, चांचरी, नखशिख आदि अनेक काव्यरूप अन्तभुक्त मिलेंगे। पद्मावत में स्तवन, बारहमासा, षड्ऋतु-वर्णन, नखशिख आदि मिल जाते हैं। रसरतन में स्तोत्र, स्तवन, नखशिख, विवाहलो, राजप्रशस्ति, नायिकाभेद, बारहमासा आदि कई काव्यरूप अन्तर्भुक्त दिखाई पड़ते हैं। शिल्प के अन्तर्गत शैली, काव्यरूप, कथाविन्यास और कथातत्त्वों को भी समाविष्ट करना चाहिए। यद्यपि वटवृक्ष का बीज अत्यधिक सूक्ष्म होता है तथापि उसके अन्दर एक विशाल वटवृक्ष का रूप छिपा रहता है। ठीक वैसे ही 'शिल्प' शब्द के उल्लेख मात्र से रचना ( कथावार्ता, चरित, आख्यान आदि ) की रचना-प्रक्रिया का-भाव से अभिव्यक्ति और उसके माध्यम तक की रचना-प्रक्रिया का बोध होता है। शिल्प का मैंने उसी व्यापक अर्थ में प्रयोग किया है। मानवशरीर पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश पांच तत्त्वों से निर्मित होता है, हाथ, पैर, आंख, कान आदि उसके अंग-प्रत्यंग होते हैं। यदि शरीर का एक भी अंग-भंग है तो वह पूर्ण सुख से वंचित रहेगा। कथा का निर्माण भी अलग-अलग तत्त्वों के मेल से होता है। कथा के उन तत्त्वों में से यदि किसी तत्त्व का शिल्प-गठन कमजोर हुआ तो वही कथा का दोष बन जायेगा। दूसरे शब्दों में यह कि कथा के विभिन्न अंगों में सामंजस्य ही कथा को प्रभावोत्पादक और ग्राह्य बनाता है । कथा को विभिन्न तत्त्वों के माध्यम से, उसकी पूर्णता को समझने का एक शिल्प होता है । संस्कृत साहित्य-शास्त्रियों ने वस्तु, नेता और रस को कथा के तीन तत्त्व स्वीकार किये हैं। प्राकृत भाषा के वसुदेवहिण्डी नामक 'ग्रन्थ में कथा के छः अंगों का उल्लेख किया गया है : १. कथोत्पत्ति-कथा की उत्पत्ति कैसे हुई, इसका विवरण । २. प्रस्तावना-कथा की पृष्ठभूमि । ३. मुख-कथा का आरम्भ । ४. प्रतिमुख-कथा के आरम्भोपरान्त फल की और गमन । ५. शरीर-कथा का विकास और प्राप्ति, प्रयत्न और नियताप्ति की स्थिति।
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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