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. ११६ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
डा० सत्येन्द्र ने ८वीं शती से १४वीं शती तक के काव्यरूपों की सूची इस प्रकार दी है : १. गाथाबंध, २. दोहाबंध, ३. पद्धड़ियाबंध, ४. चौपाई-दोहावली-रमैनी, ५. छप्पयबंध, ६. कुंडलिनीबंध, ७. रासाबंध, ८. चर्चरी या चांचर, ९. फाग, १०. साखी, ११. सबदी, १२. दोहरे, १३. सोहर, १४. पद, १५. मंगलकाव्य, १६. चौंतीसा, १७. विप्रमतीसी, १८. बसंत, १९. वेलि, २०. विरहुली, २१. हिंडोला, २२. कवित्त-सवैया, २३. कहरा, २४. बरवै, २५. विनय, २६. लीला, २७. अखरावट, २८. नहछ , २९. रासक, ३०. रास, ३१. भ्रमरगीत, ३२. मुकरी, ३३. दो सखुने, ३४. अनमिल, ३५. ढकोसला, ३६. बुझावल, ३७. षड्ऋतुं, ३८. बगसाला, ३९. नखशिख, ४०. दसम : दशावतार, ४१.. भंडोआ, ४२. जीवनी, ४३. सतसई, ४४. मंगल, ४५. माहात्म्य, ४६. पच्चोसी, ४७. बत्तीसी, ४८. पुराण, ४९. संवाद, ५०. घोड़ो, ५१. पत्तल. ५२. काव्य, ५३. चरित । इन रूपों का नामकरण छंद, गीत, शैली, संख्या और विषय के आधार पर है।
आरम्भिक ब्रजभाषा के काव्यरूपों का विवेचन करते हुए डा० शिवप्रसाद सिंह ने निम्नलिखित काव्यरूप बताए हैं :
१. चरितकाव्य, २. कथा-वार्ता, ३. रास और, रासो, ४. लीलाकाव्य, ५. षड्ऋतु और बारहमासा, ६. बावनी, ७. विप्रमतीसी, ८. वेलिकाव्य, ९. गेयमुक्तक, १०. मंगलकाव्य ।
उपर्युक्त काव्यरूपों की सूचियों से हिन्दी साहित्य के आदिकाल से १९वीं शताब्दी तक के काव्यरूपों पर प्रकाश पड़ता है।
हिन्दो में प्रेमाख्यानकों के कहा ( कथा ), कहाणी ( कोतिलता ), चरित, रास या रासो, वार्ता ( छिताईवार्ता ) आदि नाम मिले हैं । आज भी गुजराती में कहानी को वार्ता ही कहते हैं । ख्यात और बात ये दोनों शब्द पुरानी राजस्थानी में प्रचुर संख्या में कथाकाव्यों के नाम के साथ प्रयुक्त हुए हैं। इन आख्यानों मे स्तवन, स्तोत्र, षड्ऋतु-वर्णन, बारह
१. डा० सत्येन्द्र, मध्ययुगीन हिन्दी साहित्य का लोकतात्विक अध्ययन, पृ०
४६७-६८. २. डा० शिवप्रसाद सिंह, सूरपूर्व ब्रजभाषा और उसका साहित्य, पृ० ३१५.