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- हिन्दी प्रेमाख्यानकों का शिल्प : ११५
रसलहरी, ८८. चंद्रावला, ८९. दीपक, ९०. प्रदीपिका, ९१. फुलड़ा, ९२. जोड़, ९३. परिक्रम, ६४. कल्पलता, ९५. लेख, ९६. विरह, ९७. मूंदड़ी, ९८. सत, ९९. प्रकाश, १००. होरी, १०१. तरंग, १०२. तरंगिणी, १०३. चौक, १०४. हंडी, १०५. हरण, १०६. विलास, १०७. गरबा, १०८. बोली, १०९. अमृतध्वनि, ११०. हालरियो, १११. रसोई, ११२. कडा, ११३ झूलणा, ११४. जकड़ी, ११५. दोहा, ११६. कुंडलिया, ११७. छप्पय आदि ।
हिन्दी-काव्यरूपों पर विचार करते समय श्री गुलाबराय ने वि० १४वीं शताब्दी से पूर्व के जिन काव्यरूपों का उल्लेख किया है, वे इस प्रकार हैं : १. चरितकाव्य, २. कवित्त-सवैया, ३. वरवै, ४. दोहा, ५. मंगलकाव्य, ६: सबद, ७. रमैनी, ८. कहरा, ९. बसन्त, १०. चांचर, ११ रासक, १२. फाग, १३. लीला के पद, १४. आल्हा या वीर छन्द, १५. सोहर, १६. हिंडोला तथा वीर काव्यों के छप्पय, तोमर आदि छन्द ।
डा० रामबाबू शर्मा ने अपने शोध-प्रबन्ध में ३३८ प्रामाणिक ग्रन्थों के आधार पर २४ काव्यरूपों, की उद्भावना की है। वास्तव में डा० शर्मा का यह कार्य हिन्दी-साहित्य की एक उपलब्धि मानना चाहिए। उन्होंने १५वीं शताब्दी से १७वीं शताब्दी तक के प्रचलित काव्यरूपों की तालिका
इस प्रकार दी है : १ वानी, २. चरितकाव्य, ३. रास, ४. कथा-वार्ता• काव्य, ५. पद, सबद, लोला के पद, ६. स्तोत्र, स्तुति, विनती-काव्य,
७. सिद्धान्त एवं उपदेशपरक काव्य, ८. प्रशस्तिकाव्य, ९. पुराण, १०. ऐतिहासिक काव्य, ११. मंगलकाव्य, १२. लोला-काव्य, १३. साखी, १४. -छन्द-गोतपरक काव्य, १५. माल या मालाकाव्य, १६. संवाद, वादू, गोष्ठी, बोधसंज्ञक-काव्य, १७. बारहलड़ी या बावनी, १८. बारहमासा, १९. संख्यापरक काव्य, २०. भ्रमरगीत, २१. कथा, २२. अष्टयाम, २३. नखशिख तथा २४. नाटक ।
१. अगरचन्द नाहटा, प्राचोन काव्यों की रूप परंपरा, प० २. २. गुलाबराय, काव्य के रूप, पृ० ४४. ३.. डा० रामबाबू शर्मा, हिन्दी काव्यरूपों का अध्ययन, पृ० ७८.