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________________ ११४ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक काव्यरूपों के परिवर्तन का मुख्य कारण भाषा में परिवर्तन का आना हो है। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के शब्दों में 'जब-जब कोई जाति नवीन जातियों के सम्पर्क में आती है तब-तब उसमें नई प्रवृत्तियां आती हैं, नई आचार-परम्परा का प्रचलन होता है, नये काव्यरूपों की उद्भावना होती है और नये छन्दों में जनचित्त मुखर हो उठता है, नया छन्द नये मनोभाव को सूचना देता है।'' अतः स्पष्ट है कि काव्यरूपों का इतिहास युगानुकूल प्रवृत्तियों से जुड़ा हुआ है। काव्यरूप मात्र काव्यरूप नहीं अपितु अपने उद्भवकाल की परिस्थिति के उद्घोषक भी हैं। लोकभाषा अपभ्रंश और हिन्दी के काव्यरूपों का आकलन किया जाये तो एक लम्बी सूची बन जायेगी। भाषा-काव्यों का परिचय देते हुए श्री अंगरचन्द नाहटा ने एक लम्बी सूची दी है, जिसे अविकल रूप में नीचे उद्धृत किया जा रहा है : १. रास, २. संधि, ३. चौपाई, ४. फागु, ५. धमाल, ६. विवाहलो, ७. धवल, ८. मंगल, ९. वेलि, १०. सलोक, ११. 'संवाद, १२. वाद, १३. झगड़ी, १४, मातृका, १५. वावनी, १६. कक्क, १७. बारहमासा, १८. चौमासा, १९. पवाड़ा, २०. चर्चरी (चांचरि ), २१. जन्माभिषेक, २२. कलश, २३. तीर्थमाला, २४. चैत्यपरिपाटी, २५. संघवर्णन, २६. ढाल, २७. ढालिया, २८. चौढालिया, २९. छढालिया, ३०. प्रबंध, ३१. चरित, ३२. संबंध, ३३. आख्यान, ३४. कथा, ३५. सतक, ३६. बहोत्तरी, ३७. छत्तीसी, ३८. सतरी, ३९. बत्तीसो, ४०. इक्कोसी, ४१. इकतोसी, ४२. चौबीसी, ४३. बीसी, ४४. अष्टक, ४५. स्तुति, ४६. स्तवन, ४७. स्तोत्र, ४८. गीत, ४९. सज्झाय, ५०. चैत्यवंदन, ५१. देववंदन, ५२. वोनती, ५३. नमस्कार, ५४. प्रभातो, ५५. मंगल, ५६. सांझ, ५७. बधावा, ५८. गहेली, ५९. होयालो, ६०. गढ़ा, ६१. गजल, ६२. लावणी, ६३. छंद, ६४. नीसाणी, ६५. नवरसी, ६६. प्रवहण, ६७. पारणो, ६८. वाहण, ६९. पदावली, ७०. गुर्वावली, ७१. हमचड़ो, ७२. हीच, ७३. मालमालिका, ७४. नाममाला, ७५. रागमाला, ७६. कुलक, ७७. पूजा, ७८. गीता, ७९. पद्याभिषेक, ८०. निर्वाण, ८१. संयम श्री विवाह-वर्णन, ८२. भास, ८३. पद, ८४. मंजरी, ८५. रसावली, ८६. रसायन, ८७. १. डा० हजारीप्रसाद द्विवेदी, हिन्दी साहित्य का आदिकाल, पृ० ९०.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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