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११२ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
है। सम, प्रसन्न, मधुर, उदार और ओजस्वी इसके गण हैं। उक्तिवर्ण इसके वचन हैं, रस आत्मा है, छन्द रोम हैं, प्रश्नोत्तर, प्रहेलिकादि वाग्विनोद हैं और अनुप्रास, उपमा आदि उसे अलंकृत करते हैं।' इनके बाद आचार्य कुन्तक ने काव्य का लक्षण अधिक विस्तार के साथ किया है । इनके अनुसार शब्द और अर्थ सहित व्यंजना-व्यापार-प्रधान मनोरम हृदयाह्लादक व्यवस्थित बन्ध काव्य है। आचार्य क्षेमेन्द्र का 'औचित्य-सिद्धान्त' प्रसिद्ध है। उसी के अनुसार वे 'औचित्य' को ही काव्य का जीवित मानते हैं। साहित्यदर्पणकार आचार्य विश्वनाथ 'रसात्मक वाक्य' को काव्य मानते हैं । वाक्यं रसात्मकं काव्यम् में 'रसात्मक वाक्य' का अर्थ 'जिम वाक्य का आत्मतत्त्व रस हआ करता है' किया है। उक्त काव्य के लक्षणों को निरूपण करने के बाद निष्कर्ष यह निकलता है कि शब्द और अर्थ को ही अधिकांश आचार्यों ने काव्य माना है। काव्य के प्रयोजन और उसके हेतुओं की भी
१. शब्दार्थो ते शरीरं, संस्कृतं मुखं, प्राकृतं बाहुः, जघन्यमपभ्रंशः, पेशाचं
पादी, उरो मिश्रम् । समः प्रसन्नो मधुर उदार ओजस्वी चासि । उक्तिवर्ण च ते वचः, रस आत्मा, रोमाणि छन्दांसि, प्रश्नोत्तरप्रवल्हिकादिकं च
वाक्केलिः, अनुप्रासोपमादयश्च त्वामलंकुर्वन्ति । -काव्यमीमांसा, पृ० १५. २. शब्दार्थों सहितो वक्र-कविव्यापारशालिनि ।
बन्धे व्यवस्थिती काव्यं तद्विदाह्लादकारिणी ॥ -वक्रोक्तिजीवित, १. ३. औचित्यविचारचर्चा, ४-५.
काव्यस्यालमलंकारैः किं मिथ्यागणितैर्गुणैः, . यस्य जीवितमौचित्यं विचित्यापि न दृश्यते । अलंकारास्त्वलंकारा गुणा एव गुणाः सदा,
औचित्यं रससिद्धस्य स्थिरं काव्यस्य जीवितम् ॥ ४. साहित्यदर्पण, १. ३. ५. (अ) शब्दार्थों सहितौ काव्यं गद्यं पद्यं च तद् द्विधा-काव्यालंकार, १. १६.
(ब) काव्यशब्दोऽयं गुणालंकारसंस्कृतयोः शब्दार्थयोर्वर्तते -वही १. १. (स) शब्दार्थों काव्यम्-वही, २. १. (द) अदोषौ सगुणौ सालंकारौ च शब्दार्थों काव्यम्-काव्यानुशासन, पृ० १६.