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हिन्दी प्रेमाख्यानकों का शिल्प : १०९
भावशैली के अन्तर्गत निम्नलिखित शैलियाँ आती हैं :
१. विनोदात्मक, २. आत्मचिन्तनशैली, ३. आत्म-विश्लेषण, ४. विचारात्मक, ५. प्रमाणबहुला, ६.व्यंग्यात्मक, ७. व्यास-शैली, ८. आवगात्मक, ९. भावात्मक, १०. उपालम्भात्मक, ११. लोमहर्षणशैली, १२. क्रमिकउत्तेजन शैली।
· पं० करुणापति त्रिपाठी ने शैलियों का व्यक्तिप्रधान शैली और विषषप्रधान शैली के रूप में वर्गीकरण किया है, जो अधिक सटीक है। इन दोनों ही भेदों में वे तोन-तीन उपभेद स्वीकार करते हैं । वे हैं-रागात्मक, इन्द्रियानुभवात्मक और ज्ञानात्मक शैली। इनके अनुसार एक तीसरी शैली है आलोचनात्मक शैली जो. दो प्रकार की होती है : १. निर्णयात्मक आलोचना, २. व्याख्याप्रधान आलोचना शैली । चौथी रूढ-धार्मिक और राष्ट्रीय-शैली का भी उल्लेख आपने किया है। ___ इन सारे मतमतान्तरों को देखने से स्पष्ट हो जाता है कि हमारे यहाँ जिसे रोति, वत्ति, काव्यापभेद, स्थापत्य आदि कहा गया है वह वस्तुतः शिल्प से काफ़ी भिन्न है। पश्चिम में शैली जिसे स्टाइल या टेकनिक कहते हैं वह भी शिल्प का पूरा अर्थ लेने में असमर्थ है। वस्तुतः शिल्प एक व्यापक शब्द है जिसमें वस्तु के मूल गठन, स्थापनसंगठन, विधा-आकृति तथा शैली सभी का समावेश हो जाता है। •चंकि यह शब्द केवल कथय-वस्तु की अभिव्यक्ति-प्रणाली से ही सीमित नहीं है, इसलिए इसे साहित्यिक कोटियों में श्रेणी-विभक्त करना भी पूर्णतः संगत नहीं होगा। शिल्प में किसी भी जाति की मनोवृत्ति का पूर्ण प्रतिबिम्ब देखा जा सकता है। भारतीय कथा-साहित्य का . शिल्प भारतीय मानस की मनोवृत्ति का परिचायक है। सूफी आख्यानों में इसी कारण शुद्ध भारतीय शिल्प से किंचित् भिन्न मनोनि का रूप दिखाई पड़ता है। यद्यपि आगे चलकर भारतीय कथा और सफी आख्यानकों का शिल्प एक-दूसरे से मिल-जुलकर नया रूप ले लेता है
१. पं० परशुराम चतुर्वेदी, काव्य में शैली और कौशल, पृ० २४-३२. ___२. पं० करुणापति त्रिपाठी, शैली, पृ० १९३.
३. वही, पृ० २०१. ४. वही, पृ० २१९.