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हिन्दी प्रेमाख्यानकों का शिल्प : १०३ काव्यमातृका)। इनकी उत्पत्ति के विषय में भरतानुशासन में कहा गया है कि भारती-वृत्ति ऋग्वेद से, सात्वती-वृत्ति यजुर्वेद से, कैशिकी-वृत्ति सामवेद से और आरभटी-वृत्ति अथर्ववेद से उत्पन्न हुई :
ऋग्वेदाद् भारती वृत्तिर्यजुर्वेदात्तु सात्वती।
कैशिको सामवेदाच्च शेषा चाथर्वणी तथा॥ वास्तव में भरत ने अपने नाट्शास्त्र में जिन वृत्तियों का उल्लेख किया है उनकी उपयोगिता नाट्यशास्त्र तक ही सीमित है । तथापि वृत्ति शब्द के इतिहास की दष्टि से इस स्थान पर उनका उल्लेख करना असंगत नहीं है। उद्भट दूसरे पंडित हैं जिन्होंने अपने 'काव्यालंकार-सारसंग्रह' नामक अलंकारग्रन्थ में परुषा, उपनागरिका और ग्राम्या या कोमला नामक वत्तियों का उल्लेख किया है । परुषा : जब किसी अनुप्रास में श, ष, रेफ वाले वर्ण, हू, हू, ह्य आदि प्रयुक्त होते हैं। उपनागरिका : द्विरुक्त वर्णों का प्रयोग, वर्ग के अक्षरों का वर्ग-पञ्चमों से संयोग जिसमें होता है । ग्राम्या या कोमला : जिसमें परुषा और उपनागरिका वृत्ति वाले वर्षों के अतिरिक्त अक्षरों का संघटन, होता हो।' रुद्रट ने अपने काव्यालंकार में वृत्ति को
समासाश्रित कहा है। आचार्य मम्मट ने उपनागरिका, परुषा तथा कोमला • वृत्ति का संकेत किया है और इन्हें रीतियों के अन्तर्गत ही रखा है।
रीति के प्रमुख प्रतिष्ठापकों में से वामन का नाम प्रथम है । उन्होंने रीति को काव्य की आत्मा माना। विशिष्ट पद-रचना को रीति का
आरभटी-या चित्रयुद्धभ्रमशस्त्रपात-मायेन्द्रजालप्लुतिलंधिताया। ओजस्विगुर्वक्षरबन्धगाढा, ज्ञेया बुधैः सा रमटीति वृत्तिः ॥
-शृङ्गारतिलक. .. १.. शषाभ्यां रेफसंयोगेष्टवर्गेण च योजिता ।
परुषा नाम वृत्तिः स्यात् ह्रह्वह्याद्यैश्च संयुता ।। सरूपसंयोगयुतां मूनि वर्गान्तयोगिभिः । स्पर्शर्यतां च मन्यन्ते उपनागरिकां बुधाः ॥ शेषर्वगैर्यथायोगं कथितां कोमलाख्यया ।
ग्राम्यां वृत्ति प्रशंसन्ति काव्येष्वादृतबुद्धयः ॥-उद्भट, का० १. ५. ३. ७. २. केषांचिदेता वैदर्भी प्रमुखा रोतयो मताः ।-काव्यप्रकाश, ९. ४. ३. रीतिरात्मा काव्यस्य । -काव्यालंकार, २. ६.