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९६ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक है, अपने पृथक् नियम रखता है।
भावात्मक क्रान्ति लाने के लिए अभिनव शिल्प अथवा तकनीक को अपेक्षा होती है। जब संसार को जानने के परम्परागत मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं तब व्याख्या करने के रुढ़िवादी ढंग भी अमान्य हो जाते हैं। इसी कारण डा० रूथ के मत से 'कला को नित्य नया होते रहना चाहिए । उसका रचनात्मक प्रभाव अभिनव आश्चर्यकारी तत्त्वों पर निर्भर करता है। एक बार प्रस्तुतीकरण को नवीनता जहाँ धूमिल हुई नहीं कि पाठक उसे छोड़ अपने दैनिक कार्यों में संलग्न हो जाता है। उपर्युक्त उद्धरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि कलाकार अपने युग के अनुरूप अभिनव शिल्प को हमेशा तलाश करते रहते हैं। यह अभिनवता क्या परम्परा से पूर्णतः विच्छिन्न होकर ही आती है ? ऐसा नहीं होता है। क्योंकि परम्परा और अतीत पर्यायवाची.नहीं हैं । परम्परा का अर्थ ही है। अपने से भिन्न के साथ सम्बद्ध होती हई प्रक्रिया । यानी परम्परा हमेशा अपने को युगानुरूप बदल लेती है जबकि अतीत किसी खास कालखण्ड में सीमित होकर रुक जाता है । परम्परा गतिशील प्रक्रिया है, वह पुराने से अनावश्यक को छोड़कर और नये से जीवंत को पकड़कर अपना संतुलन बनाये रहती है। शिल्प के साथ भी ऐसा ही होता है । कोई शिल्प अयाततः नया नहीं हो सकता। तकनीक अथवा रचना-विधान नये हो सकते हैं, परन्तु वे कहीं न कहीं परम्परा से सूत्रबद्ध अवश्य दृष्टिगोचर होंगे। यदि कथाकार अथवा रचनाकार को ऐसा कुछ कहना है जो पहले नहीं कहा गया था तो संभवतः वह अपने प्रयोग के लिए ठोक ढंग और विषय
1. Writers at Work, p. 37. 2. A revolution in sensibility demands new techniques.
When traditional ways of knowing the world collapse, traditional forms of expression are invalidated. -A. Wal
ton Litz, Art of James Joyce, p. 53. 3. Art must always be renewed. Its creative influence depends
on surprise. When once the freshness of the presentment has faded, the reader relapses into his daily habits.-Dr. H. V. Routh, English Literature and Ideas in the Twentieth Century, p. 2.