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________________ ब्राह्मण आदि चार वर्णों के कार्य, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शद्र, श्रेणी संगठन, पारिवारिक जीवन, संतान के प्रति ममता, लौकिक, देवी-देवता, जादू-टोना, अंधविश्वास, आमोर -प्रमोद के साधन जीवनोपयोगी साधन, जीवन यापन स्तर, मरण संस्कार, आयुर्वेद आदि विषयों पर प्रकाश डाला गया है। अध्याय क्रमांक दस में आगम साहित्य में शासन व्यवस्था सम्बंधी मिलने वाले विवरण का उल्लेख किया गया है । इसमें राजा और राजपद, राजा की दिनचर्या का प्रारम्भ, राजा का उत्तराधिकारी, राजा का अंत:पुर, राजा के प्रधानपुरुष, सैन्य व्यवस्था, राज्य की आय के स्रोत, शासन की इकाई गांव, राजा का एकछत्र राज, अपराध और दण्ड, न्याय-व्यवस्था पर विचार किया गया है । इस प्रकार आगमों में शासन व्यवस्था सम्बंधी लगभग समस्त आवश्यक बातों का विवरण उपलब्ध होता है। .. अध्याय क्रमांक ग्यारह में अर्थोपार्जन व्यवस्था का उल्लेख किया गया है। चूंकि प्रारम्भ में प्रत्येक देश में कृषि का अपना विशेष महत्व था, इसलिए हर स्थान पर पहले कृषि का विवरण अवश्य मिलता है। आगमों में कृषि उपज, अन की सुरक्षा के उपाय, पशुपालन का विवरण तो मिलता ही है, साथ ही वनोपज, खनिज पदार्थ, कताई, बुनाई, आभूषण निर्माण, लोह मिट्टी आदि के उपकरणों का निर्माण, सुगंध, इत्र, धूप के व्यापारी आदि का विवरण भी उपलब्ध होता है। फिर कारीगर, अन्य पेशेवर लोग, भृत्य, दास आदि की जानकारी भी मिलती है । प्रमुख व्यापारिक केंद्रों का परिचय देकर यातायात के साधनों का उल्लेख किया गया है । माप-तौल, उधार लेन-देन और व्यापारिक संगठनों का उल्लेख भी आगम साहित्य में मिलता है, जिनका समुचित विवरण आचार्य देव ने इस अध्याय में दिया है। अध्याय क्रमांक बारह में आगम साहित्य में धार्मिक व्यवस्था पर प्रकाश डाला गया है। चूंकि सम्पूर्ण आगम साहित्य धर्म और दर्शन विषयक ग्रंथ है । अत: उनमें धर्म और दार्शनिक विषयों का प्रतिपादन विस्तार से किया गया है। आचार्य भगवंत ने अध्याय क्रमांक नौ, दस और ग्यारह में धर्मेतर और दर्शनेतर विषयों का विवरण प्रस्तुत कर कतिपय विद्वानों के उस मंतव्य को समाप्त कर दिया है जो यह कहते हैं कि जैनागमों में धर्म-दर्शन के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। वास्तव में अभी तक जैन आगम साहित्य का अध्ययन इस दृष्टि से हुआ ही नहीं है । आवश्यकता इस बात की है कि समग्र आगम साहित्य का पृथक-पृथक सांस्कृतिक अध्ययन प्रस्तुत किया जावे तो अनेक ऐसे तथ्य सामने आ जावेंगे जिनसे अभी तक सब अपरिचित हैं । आगम साहित्य केवल धर्म और दर्शन का ही प्रतिपादन नहीं करते वरन् उनमें इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र,
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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