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________________ सम्पूर्ण ग्रंथ को कुल बारह अध्यायों में बाँटा गया है । प्रथम अध्याय में आगम का लक्षण, आगम प्रामाण्य, वैदिक दृष्टि और आगमों के उपदेष्टा पर प्रकाश डाला गया है। यह अध्याय आगम साहित्य को समझने में सहायक है । दूसरे अध्याय में आगमों का वर्गीकरण किया गया है । इसमें आगमों की संख्या पर विचार करते हुए वर्गीकरण के रूप भी बताये गये है। साथ ही अंग-अंगबाह्य शब्दों को भी समझाया गया है। इससे जैन धर्मेतर व्यक्ति को समझने में काफी सहायता मिलती है। तीसरा अध्याय आगमों के रचना काल से सम्बंधित है । श्रुत परम्परा से जब ज्ञान के क्षय होने-नष्ट होने की सम्भावना हुई तो तत्कालीन विज्ञ आचार्यों ने आगम साहित्य को शुद्ध रूप में सुरक्षित रखने के लिये परिषदों का आयोजन करके आगम साहित्य को संग्रहीत किया और फिर लिपिबद्ध कर सुरक्षित किया। ऐसी जितनी भी वाचनायें हुई उनका संक्षिप्त किन्तु सारगर्भित विवरण इस अध्याय में दिया गया है। अध्याय चार, पाँच और छ: में अंग आगमों का बाह्य एवं आन्तर परिचय दिया गया है । चौथे अध्याय में अंग आगमों का नाम निर्देश, नामों का अर्थ, उनकी भाषा शैली, अंगों का क्रम, अंगों का पद परिमाण आदि पर प्रकाश डाला गया है । पाँचवें और छठे अध्याय में अंग आगमों का सांगोपांग परिचय दिया गया है। इस परिचय से प्रत्येक अंग आगम की विषय वस्तु का सम्पूर्ण परिचय मिल जाता है। ___ अध्याय क्रमांक सात में अंग बाह्य आगमों का परिचय दिया गया है। प्रत्येक अंग बाह्य आगम का सम्पूर्ण परिचय दिया गया है। जिससे उनकी विषयवस्तु की जानकारी सहज ही मिल जाती है। . . . .. अध्याय क्रमांक आठ में आगमिक व्याख्या साहित्य पर प्रकाश डाला गया है। इसमें व्याख्या के प्रकार व्याख्या के प्रकारों का अमिधेय, व्याख्या प्रकारों में संकलित आगमों के नाम के साथ ही प्रमुख व्याख्याकार, भाष्यकार, चूर्णिकार, टीकाकार लोक भाषा टीकाकार आदि का परिचय दिया है । उसके पश्चात् व्याख्या ग्रंथों का परिचय दिया गया है। अध्याय एक से अध्याय आठ तक का विवरण यदि विस्तार से लिखा जाए तो ग्रंथ का स्वरूप कुछ और ही हो जाता है किंतु आचार्य भगवंत ने अपनी कलम के जादुई स्पर्श से लेखन कुछ इस प्रकार किया है कि गागर में सागर समा गया है । थोड़े में ही विस्तृत परिचय मिल जाता है। अध्याय क्रमांक नौ में आगम साहित्य में वर्णित समाज-व्यवस्था पर प्रकाश डाला गया है। इसमें वर्ण और जाति, ब्राह्मणों के सम्बंध में जैन मान्यता का दृष्टिकोण, (५५)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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