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________________ यहीं यह 'आगम और आगम साहित्य का अनुशीलन' विराम लेता है। .उपसंहार यह अनुशीलन अपने आप में अनूठा एवं परिपूर्ण है । यह इतिहास, समीक्षा, उद्बोधन, अन्त: साक्ष्य के आधार पर कथातत्व, शास्त्रीय तथ्य एवं मृदुल खण्डन-मण्डन तथा सुखद सामञ्जस्य को अपने में समेटते हुए पारदर्शी स्वरूपाङ्कन का अनूठा प्रयास है, यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है। लेखन में किसी राजाज्ञा के प्रति अवनत न होते हुए उत्कट श्रम, स्वाध्याय और प्रौढ़ ज्ञान को उपस्थित करने में सफलता का वरण तो किया ही है, साथ ही अनेक अनुद्घाटित पक्षों के संशयास्पद विचारों को उद्घाटित करने में भी मानक कीर्तिमान स्थापित किया है । यह ग्रंथ जैन आगमों और उनके सम्बंध में विभिन्न प्रकार की भ्रान्तियों का निवारण करते हुए शास्त्रीय पक्ष का मण्डन भी करता है। यहाँ महाकवि हर्ष की यह उक्ति स्मरण हो आती है कि- “वाग जन्म वैफल्यमसह्यशल्यं गुणाद् भुते वस्तुनि मौनिता चेत्” अर्थात् किसी अद्भुत गुणों वाली . वस्तु के गुणों के प्रति मौन रहना, वाणी के जन्म की विफलता ही है और वह असहनीय काँटा भी है।” अत: इस अद्भुत गुणोंवाली कृति और वर्तमान जैनजगत के देदीप्यमान नक्षत्र तुल्य ग्रंथकार की जितनी प्रशंसा की जाए वह न्यून ही होगी। आज के युग में आगमों की रक्षा, अध्ययन-अध्यापन और उसके सर्वाङ्गीण अनुशीलन की महती आवश्यकता की पूर्ति इस ग्रंथ से सहज सम्भव होगी यह हमारा पूर्ण विश्वास है । देश-विदेश के जो विद्वान अनुसन्धान-प्रवृत्ति में जुटे हुए हैं उनके लिये यह 'अनुशीलन' निश्चय ही मार्गदर्शक सिद्ध होगा। ___ इस आर्ष-पुरुषार्थ के लिये आचार्य प्रवर श्री जयन्त सेन सुरीश्वरजी महाराज सदैव वन्दनीय और अभिनन्दनीय है । भविष्य में और भी ऐसी कृत्तियों के निर्माण की अपेक्षा के साथ आपके नैरोग्यपूर्ण दीर्घजीवन की मङ्गल कामना करते हुए आपके चिर स्थिर यश का प्रसार हो तथा विद्वान समुदाय इस कृति का मनोयोग पूर्वक अध्ययन करें, समादर करें, यही शुभेच्छा है। निदेशक बी.एम. बिड़ला शोध केंद्र विश्वविद्यालय मार्ग उज्जैन (म.प्र.) डॉ. रुद्रदेव त्रिपाठी साहित्य सांख्ययोग दर्शनाचार्य, एम.ए. (संस्कृत-हिंदी), पी-एच.डी, डी.लिट ; तन्त्रागम भास्कर (५२)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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