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________________ .. प्राक्कथन विश्व के जितने भी धर्म हैं, उन सबका अपना-अपना साहित्य है । उसमें उनकी धर्म-दर्शन विषयक मान्यताओं का प्रतिपादन किया गया है । वैदिक परम्परा में वेद है तो बौद्ध परम्परा में त्रिपिटक । मसीही धर्म में बाईबिल है तो इस्लाम में कुरान । इन सबका अपनी-अपनी परम्परा में विशिष्ट महत्व है। इसी प्रकार जैन परम्परा में आगम साहित्य है । सूत्र, ग्रंथ, सिद्धांत, प्रवचन, आज्ञा, वचन उपदेश, प्रज्ञापन, आगम, आप्तवचन, 'ऐतिह्य, आम्नाय और जिन वचन, श्रुत ये सभी आगम के पर्यायवाची शब्द हैं । आजकल आगम शब्द का प्रयोग अधिक होने लगा है किंतु प्राचीन काल में श्रुत शब्द का प्रयोग अधिक होता था। यह तो स्पष्ट है कि आगम साहित्य जैन धर्मावलम्बियों का परम पावन साहित्य है, फिर भी आगम की परिभाषा या अर्थ जानना आवश्यक प्रतीत होता है। आगम की परिभाषा से यह स्पष्ट हो जायेगा कि इस शब्द से कौनसा तथ्य/रहस्य ध्वनित होता है। ___ “आगम” 'आ' उपसर्ग और 'गम' धातु से निष्पन्न हुआ है । 'आ' उपसर्ग का अर्थ पूर्ण है और गम धातु का अर्थ गति प्राप्ति है । इस संदर्भ में आचार्यों ने आगम की जो परिभाषाएँ दी हैं, उनमें से कुछ इस प्रकार हैं- . “जिससे वस्तु तत्व का परिपूर्ण ज्ञान हो, वह आगम है।" ..आ- समन्ताद् गम्यते वस्तु तत्वमनेने त्यागमः । जिससे पदार्थों का यथार्थ ज्ञान हो, वह आगम है . . आगम्यन्ते मर्यादयाऽवबुद्धयन्तेऽर्थाः अनेनेत्यागमः ॥ -रत्नाकरावतारिकावृत्ति जिससे पदार्थों का परिपूर्णता के साथ मर्यादित ज्ञान हो, वह आगम है । जो तत्व आचार परम्परा से वासित होकर आता है, वह आगम है । -आवश्यक मलयगिरिवृत्ति, नन्दीसूत्र वृत्ति। उपचार से आप्तवचन भी आगम माना जाता है । आप्त का कथन आगम है। आप्तोपदेशः शब्द- न्याय सूत्र १/१/७ जिससे सही शिक्षा प्राप्त होती है, विशेष ज्ञान उपलब्ध होता है, वह शास्त्र आगम या श्रुतज्ञान कहलाता है। ' .. (५३)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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