SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 305
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इस प्रकार बहुत ऊहापोह होने के पश्चात् रजोहरण और पात्र मँगवाए गए तथा चार अंगुल छोड़कर निष्क्रमण के योग्य अग्रकेश काटने के लिए नाई बुलाया गया। सुरभिगंधोदक से हाथ और पैरों का प्रक्षालन कर, चार तहवाले शुद्ध वस्त्र से अपना मुँह ढंककर नाई ने मेघकुमार के केश काटे । इन केशों को मेघकुमार की माता ने हंस चिह्न वाले पट शाटक में ग्रहण किया। फिर उनका गंधोदक से प्रक्षालन कर, गोशीर्ष चन्दन के छीटों से चर्चित कर श्वेत वस्त्र में बाँधा और फिर रत्नों की पिटारी में उन्हें बंद करके अपने सिरहाने रख लिया। तत्पश्चात् जल के श्वेत-पीत कलशों से मेघकुमार को स्नान कराया। उसके शरीर पर गोशीर्ष चन्दन का लेप किया। नाक की साँस से उड़ जाने वाले हँस लक्षण पट शाटक उसे पहनाए गए तथा चतुर्विध माल्य एवं आभूषणों से उसे अलंकृत किया गया। इसके बाद पालकी (शिबिका) तैयार की गई । मेघकुमार को पूर्वाभिमुख सिंहासन पर बिठाया गया। उसकी माता स्नान करके वस्त्रालंकारादि से अलंकृत होकर उसके दाहिनी ओर भद्रासन पर बैठी। मेघकुमार के बायीं ओर रजोहरण और पात्र लेकर अंबा धात बैठी । उसके दोनों ओर दो सुन्दर युवतियाँ चामर ढुलाने लगी। एक सामने की ओर तालवन्त लेकर और दूसरी भंगार (झारी) लेकर खड़ी हो गई । प्रजाजनों की ओर से अभिनन्दन के शब्द सुनाई देने लगे। गुरुजनों की ओर से आशीर्वादों की बौछार होने लगी.आदि और अन्त में महावीर स्वामी ने मेघकुमार को अपने शिष्य के रूप में स्वीकार किया। * दीक्षा का निषेध यद्यपि निग्रंथ प्रव्रज्या के लिए जाति-पाँति आदि कोई भेदभाव नहीं था, हर किसी के लिए दीक्षा लेने का मार्ग खुला था, फिर भी कुछ अपवाद, नियम भी थे। जैसे कि षंढ (नपंसक), वार्तिक (वात का रोगी) और क्लीब को दीक्षा देने का निषेध किया गया। इसी प्रकार बाल, वृद्ध, जड़,व्याधिग्रस्त, स्तेन, राजापकारी, उन्मत्त अदर्शन (अंधा), दास, दुष्ट, मूढ़, ऋणपीड़ित, जात्यंगहीन, अवबद्ध (सेवक), शैश्य, निष्फोटित (अपहत किया हुआ), गर्भवती और बाल वत्सा को दीक्षा देने की मनाई है। * दीक्षा के प्रकार स्थानांग सूत्र में दीक्षा के कई प्रकार बतलाए हैं। इन प्रकारों में से कतिपय तो सहज, स्वाभाविक, स्वात्मप्रेरणा से ग्रहण की जाती थी और कुछ एक जबरन, बल आदि का प्रयोग करके, शर्त लगाकर, लोक-परलोक में सुख यश आदि की प्राप्ति की भावना से स्वप्न देखकर और जाति स्मरण आदि ज्ञान होने पर दी और ली जाती थी। इन सब कारणों से दीक्षा के अनेक प्रकार बतलाए हैं। उन सब प्रकारों को जानने के (२३०)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy