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________________ एक छोटे चावल की जाति), कोदूसा (कोदों की एक जाति), सर्षप (सरसों), हरिमंथ (गोल चना), वुक्कस और पुलावन (निस्सार) अन्न के नाम आते हैं । प्राचीन काल में चावल की खेती बहुतायत से होती थी । कलमशालि पूर्वी प्रान्तों में पैदा होता था । रक्तशालि, महाशालि और गंधशालि चावल की दूसरी बढ़िया किस्में थी । मसालों में श्रंगवेद (अदरक) सुंढ (सौंठ), लवंग, हरिद्रा (हल्दी), बेसन ( जीरा आदि), मरिय (मिर्च), पिप्पल (पीपल) और सदिस वत्थग (सरसों का उल्लेख मिलता है । चावल की तरह गन्ना (इक्खु) भी मुख्य फसल थी । गन्ने के खेत को सियारों से बचाने के लिए चारों ओर खाई खोदी जाती थी और बाड लगायी जाती थी । पुण्ड्रवर्धन गन्ने की फसल के लिए प्रसिद्ध था । लोग बड़े चाव से गन्ना चूसते थे | मत्यंडिका, पुष्पोत्तर और पद्मोत्तर नामक शक्करों का उल्लेख मिलता है । 1 कपड़े बनाने के लिए कपास की फसल बोयी जाती थी । इसके अतिरिक्त अन्य फसलों में रेशम, ऊर्जा (ऊन), क्षोम (छालरी) और सन का भी उल्लेख मिलता है । साग-भाजी में बैंगन ककड़ी, मूली, पालक, करेला, कंद (आलुग - आलू), सिंघाड़ा, लहसुन, प्याज, सूरण, तुंबी (लौकी, घिया) आदि का उल्लेख मिलता है । तुंबी ईख के साथ बोयी जाती थी और लोग उसे गुड़ के साथ खाते थे । बाडो में मूली, ककड़ी आदि साग-भाजी बोयी जाती थी । 1 धान्य उत्पादन के लिए मुख्य साधन खेती था । वैसे ही फलफूलों से अर्थोपार्जन करने के लिए बाग-बगीचे भी लगाये जाते थे । उनमें भाँति-भाँति के फल के वृक्ष तथा फूलों के पौधे होते थे । फलों में आम, जामुन, कपित्थ (कैथ), फलस (कटहल), दाडिम (अनार), कदली फल (केला), खजूर, नारियल आदि के नाम मिलते । आम लोकप्रिय फल था । उसका अनेक प्रकार से उपयोग किये जाने से और खाने की विधियों से उसकी लोकप्रियता सिद्ध होती है । फूलों में नवमल्लिका, कोदेरक, बंधुजीवन, कनेर, कुब्जक (सफेद गुलाब), जाई, मोगरा (बेला, भू-थिका ( जूही), . मल्लिका, वासंती, मृगदंतिका, चंपक, कुन्द, श्यामलता आदि के नाम देखने को मिलते 1 कोंकण देश के निवासी फलफूलों के बहुत शौकीन थे । वे इन्हें बेचकर अपनी आजीविका चलाते थे । उत्सवों के अवसर पर पुष्पगृहों का निर्माण किया जाता था । जंगलों से फलों को सुखाने के लिए जहाँ लाया जाता था, उस स्थान को कोट्टक कहते थे । फलों को सुखाने के बाद उन्हें गाड़ी में भरकर नगरों में बिक्री के लिए लें (२०१)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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