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________________ अध्याय ११ आगमों में अर्थोपार्जन व्यवस्था का उल्लेख जीवन की मूलभूत आवश्यकता की पूर्ति के लिए आजीविका मुख्य साधन है। आजीविका का संबंध अर्थोपार्जन से जुड़ा हुआ है । अतएव आगमकालीन समाज के अर्थोपार्जन के साधनों के बारे में यहाँ संक्षेप में संकेत करते हैं। वर्तमान की तरह प्राचीन भारत में भी कृषि, श्रम, पूँजी और प्रबंध अर्थोपार्जन के मुख्य साधन रहे हैं। भारतवर्ष के गाँवों की अर्थव्यवस्था मुख्यत: गाँवों में रहने वाले किसानों पर ही निर्भर रहती आयी है। सामान्यत: गाँव वालों का पेशा खेती बाड़ी का रहा है। आज की तरह उस समय भी गाँव के चारों ओर खेत या चरागाह होते थे। वे वृक्षपंक्ति, वन, वनखंड, वनराजि से घिरे रहते थे। खेत सेत् और के इन दो भागों में विभक्त थे। सेत् को कुएँ, तालाब आदि के जल से सींचा जाता था, जबकि केत् में वर्षा के जल से धान्य की उत्पत्ति होती थी। सिंचाई के लिए बहुत से उपाय काम में लिए जाते थे। कहीं कुओं से, कहीं तालाबों से, नदी-नालों से जहाँ जैसी प्राकृतिक सुविधा उपलब्ध होती थी, तद्नुसार वहाँ के कृषक खेती करते थे। अधिक जल वाले प्रदेशों में नावों में मिट्टी भर कर भी धान्योत्पादन किया जाता था। काली उपजाऊ भूमि को उद्घात और पथरीली भूमि को अनुद्घात कहते थे । काली भूमि में अत्यधिक वर्षा होरे पर पानी वहीं का वहीं रह जाता था, बहता नहीं था। खेती के साधन हल और बैल थे। प्राचीन काल में हल देवता के सम्मान में सीता यज्ञ नामक उत्सव मनाया जाता था। जंगलों को जलाकर भी खेती की जाती थी। आगमों में हल, कुलिय और नंगल नाम के हलों का उल्लेख मिलता है । कुदाली से खोदने का काम किया जाता था। एक हल के द्वारा सौ निवर्तन (चालीस हजार वर्ग हाथ) भूमि जोती जाने का अनुनमान लगाया जाता था। * कृषि उपज आगमों में सतरह प्रकार के धान्यों का उल्लेख है- व्रीहि (चावल), यव (जौ), मसूर, गोधूम (गेहूँ, मुद्ग (मूंग), माष (उड़द), तिल, चणक (चना), अणु (चावल की एक किस्म), प्रियंगु(कंगनी) को द्रव (कोदों), अकुष्ठक (कट्ट), शालि (चावल), आढकी, कलाय (मटर), कुलत्थ (कुलथी) और सण, अन्य धान्यों में दालग (दाल). चावल (चवला), तुवरी, निष्पाद, वल्ल (एक मादक धान्य), आलिसंदग (सिलिंद), संडिण (अरहर), पलिमंथक (काला चना), अतसी (अलसी), कुसुंब (कुसुंबी), कंगु (कांगिनी (२००)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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