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________________ आगमकालीन पूर्वोक्त शासन व्यवस्था के संक्षिप्त संकेतों का सारांश यह है कि उस समय सारा देश छोटे छोटे राज्यों में विभाजित था। राज्य में षड्यंत्र चला करते थे। उत्तराधिकार का प्रश्न विकट था और इसके लिए राजा को अपने पुत्रों तक से भी सावधान रहना पड़ता था। अन्त:पुर भी एक प्रकार से षड्यंत्र के अड़े थे। उनकी रक्षा और अपने जीवन के लिए राजा सदा ध्यान रखता था । यदि किसी के कोई सुन्दर वस्तु होती या सुन्दर स्त्री होती, तो उसे अपने अधिकार में ले लेने के लिए राजा तत्पर रहते थे। यदि वह सहज नहीं मिलती, तो युद्ध के जरिये उसे प्राप्त करने में भी राजा लोग नहीं हिचकते थे। युद्ध में साम, दाम व भेद नीति का आश्रय लिया जाता था। उस काल में चोरी, व्यभिचार और हत्याएँ आदि अपराध भी होते थे। चोरी का उत्पात तो भयंकर था । जेलों की दशा अत्यन्त दयनीय थी। वहाँ भयंकर यातनाएँ दी जाती थी। झूठी साक्षी और झूठे दस्तावेज चलते थे। कर वसूल करने में काफी सख्ती बरती जाती थी । राजा निरंकुश होते थे । साधारण सा अपराध होने पर भी वे कठोरतम दंड दे देते थे और पक्षपात करके अपराधी के बजाय निरपराध को दंड दे देते थे। : आगम साहित्य में तत्कालीन शासन व्यवस्था की जानकारी इस प्रकार की उपलब्ध होती है। अब आगे के प्रकरण में तत्कालीन अर्थोपार्जन व्यवस्था की जानकारी दी जा रही है। . . (१९९)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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