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________________ भ्रातृघातक युद्धों में परिणत हो जाता था। यदि कोई अनहोनी घटना नहीं घटती, तो ज्येष्ठ पुत्र को राजपंद और कनिष्ठ पुत्र को युवराज पद मिलता था। यदि राजा के दों से अधिक पुत्र होते, तो उनकी परीक्षा ली जाती थी और जो उस परीक्षा में सफल होता था, उसे युवराज बनाया जाता था। राजा की मृत्यु हो जाने पर जिस पुत्र को राजसिंहासन पर बैठने का अधिकार मिलता, वह यदि दीक्षा ले लेता, तो उस स्थिति में उसके कनिष्ठ भ्राता को राजगद्दी पर बिठाया जाता था। कभी दीक्षित राजपुत्र संयम पालन में अपने आपको असमर्थ पाता और दीक्षा त्याग कर वापस लौट आता, तो उसका कनिष्ठ भ्राता उसे अपने आसन पर बैठा स्वयं उसका स्थान ग्रहण कर लेता था अर्थात् दीक्षित हो जाता था। कभी राजा युवराज का राज्याभिषेक करने के पश्चात् स्वयं संसार त्यागने की इच्छा व्यक्त करता, लेकिन युवराज राजा बनने से इन्कार कर देता और पिता के साथ दीक्षा ग्रहण कर लेता, तो इस स्थिति में अन्य कोई राजपुत्र के न होने पर यदि कोई बहन होती और उसका पुत्र इस योग्य होता, तो उसे राजा के पद पर अभिषिक्त किया जाता । क्वचित् कदाचित् पुत्री को भी अन्य कोई उपाय न देखकर राज्यपद का अधिकारी बनाया जाता था, लेकिन ऐसे उदाहरण नहीं वत् ही मिलते हैं। राजपुत्रों में उत्तराधिकार प्राप्त करने की लोलुपता होने के कारण राजा उनसे शंकित और भयभीत रहते थे और उनपर कठोर नियंत्रण रखते थे। फिर भी महत्वाकांक्षी राजपुत्र अपने कुचक्र में सफल भी हो जाते थे। * राज्याभिषेक राज्याभिषेक समारोह बड़ी धमधाम से मनाया जाता था। जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति में भरत चक्रवर्ती के अभिषेक का विस्तृत वर्णन किया गया है। उसमें बताया गया है कि अनेकं राजा-महाराजा, सेनापति, पुरोहित, अठारह श्रेणियां और वणिक आदि से परिवेष्ठित भरत ने जब अभिषेक भवन में प्रवेश किया, तो सबने सुगंधित जल से उनका अभिषेक किया और जय-जयकार से गगनमंडल गुंजा दिया। उपस्थित जन समूह की ओर से उन्हें राजमुकुट पहनाया गया, मालाएँ पहनायी गयीं और विविध आभूषणों से उन्हें अलंकृत किया गया तथा कई दिनों तक नगर में उत्सव मनाया गया। ज्ञाताधर्म कथा में मेघकुमार के अभिषेक का बहुत ही सरस वर्णन किया गया 80/ चंपा, मथुरा, वाराणसी, श्रावस्ती, साकेत, कांपिल्य, कौशांबी, मिथिला, हस्तिनापुर और राजगृह इन दस नगरों को अभिषेक राजधानी कहा गया है । (१८७)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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