SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 259
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विपाक सूत्र में भी सोलह रोगों के नामों का उल्लेख मिलता है । किन्तु नामों में भिन्नता है । देखिये-(१) श्वास, (२) कास, (३) दाह, (४) कुक्षि शूल, (५) भगन्दर, (६) अर्श, (७) अजीर्ण, (८) दृष्टि शूल, (९) मस्तक शूल, (१०) आरोचक, (११) अक्षिवेदना, (१२) कर्णवेदना, (१३) खुजली, (१४) जलोदर, (१५) कोढ़ और (१६) बवासीर। ज्ञाता धर्म कथाङ्ग में विपाक सूत्र में मिलने वाले सोलह रोगों से मिलते-जुलते नामोल्लेख हैं किन्तु कुछ अन्तर भी हैं । यथा (१) श्वास, (२) कास, (३) ज्वर, (४) दाह, (५) कुक्षिशूल, (६) भगन्दर, (७) अर्श,(८) अजीर्ण, (९) नेत्रशूल, (१०) मस्तकशूल,(११) भोजन विषयक अरुचि, (१२) नेत्रवेदना, (१३) कर्णवेदना, (१४) कंडू, (१५) दकोदर-जलोदा और (१६) कोढ़। ___ रोगियों की चिकित्सा के लिए चिकित्सा शाला होने का उल्लेख ऊपर किया जा चुका है, किन्तु यह भी उल्लेख है कि वैद्य अपने घरों से शास्त्र कोश लेकर निकलते थे, और रोग का निदान जानकर अभ्यंग, उबटन, स्नेहपान, वमन विरेचन, अवदहन, (गर्म लोहे की शलाका आदि से दागना), अवस्नान (औषधि के जल से स्नान), अनुवासना (गुदा द्वारा पेट में तैलादि के प्रवेश कराना), वस्ति कर्म, (चर्म वेस्टन द्वारा सिर आदि में लेप लगाना अथवा गुदा भाग में बत्ती आदि चढ़ाना), निरुह (एक प्रकार का विरेचन), शिरावेध (नाड़ी वेध कर रक्त निकालना), तक्षण (छुरे आदि से त्वचा आदि काटना), प्रतक्षण (त्वचा का थोड़ा भाग काटना),शिरोवस्ति (सिर में चर्म कोश बाँधकर उसमें संस्कृत तेल का पूरना), तर्पण (शरीर में तेल लगाना), पुटपाक (पाक) विशेष से तैयार की हुई औषधि तथा छाल, बल्ली मूल, कंद, पत्र, पुष्प फल, बीज, शिलिका (चिरायता आदि कड़वी औषधि), गुटिका, औषधि आदि से उपचार करते थे । जैनागम साहित्य का इस दृष्टि से गहन अनुशीलन अपेक्षित है। उक्त प्रकार से आगमिक युग की सामाजिक व्यवस्था का संक्षेप में दिग्दर्शन कराया है । सामाजिक जीवन से संबंधित अन्य कतिपय बातों का आगे उल्लेख किया जा रहा है। १. विपाक सूत्र, १/२२ २. ज्ञाता., १३/२१ ३. ज्ञाता., १३/२२, विपाक सूत्र,१/२३ (१८४)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy