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________________ (५) जंगोली या जांगुल - इसके अंतर्गत विषों की चिकित्सा का विधान है । (६) भूत विद्या- भूत-प्रेत, यक्षादि से पीड़ित व्यक्ति की चिकित्सा का शास्त्र । (७) क्षारतंत्र या बाजीकरण- बाजीकरण, वीर्यवर्धक औषधियों का शास्त्र । (८) रसायन - पारद आदि धातु रसों के द्वारा चिकित्सा का शास्त्र अर्थात आयु को स्थिर करने वाली व व्याधि - विनाशक औषधियों का विधान करने वाले प्रकरण विशेष । विपाक सत्र में यह भी बताया गया है कि धन्वन्तरी वैद्य राजा तथा अन्य रोगियों को मांस भक्षण का उपदेश देता था, इस कारण वह (अपने पाप कर्मों के कारण) काल करके छट्ठी नरक पृथ्वी में उत्कृष्ट बावीस सागरोपम की स्थिति वाले नारकियों में नारक रूप से उत्पन्न हुआं' । यहाँ यह उल्लेख प्रासंगिक ही होगा कि जैन आगमों में अहिंसा तत्व को प्रधानता दी गई है । अहिंसा को सर्वोपरि माना गया है। इस सम्बन्ध में आचारांग सूत्र' में मिलने वाला उल्लेख प्रस्तुत है । वहाँ कहा गया है अपने को चिकित्सा पंडित बताते हुए कुछ वैद्य चिकित्सा में प्रवृत्त होते हैं । वह अनेक जीवों का हनन, भेदन, लुम्पन, विलुम्पन और प्राण- वध करते हैं, जो पहले किसी ने नहीं किया, ऐसा मैं करूंगा' यह मानता हुआ वह जीववध करता है। वह जिसकी चिकित्सा करता है, वह भी जीववध में सहभागी है । इस प्रकार की हिंसा प्रधान चिकित्सा करने वाले अज्ञानी की संगति से क्या लाभ। जो चिकित्सा करवाता है, वह भी अज्ञानी है । अनगार ऐसी चिकित्सा नहीं करवाता । इस प्रकार चिकित्सा में हिंसा का निषेध किया गया है । रोगों के नाम- आचारांग सूत्र में सोलह प्रकार के रोगों के नामों का उल्लेख हैं। यथा - (१) गण्डमाला, (२) कोढ़, (३) राजयक्ष्मा, (४) अपस्मार (मृगी), (५) काणत्व, (६) जड़ता (अंगोपांगों की शून्यता), (७) कुणित्व ( टूटापन, एक हाथ या पैर छोटा और बड़ा-विकलांग होना), (८) कुबड़ापन, (९) उदररोग (जलोदर, अफारा, उदर शूल आदि), (१०) मूकरोग (गूंगापन), (११) शोथ रोग-सूजन, (१२) भस्मक रोग, (१३) कम्पनवात, (१४) पीठसर्पी, पंगुता, (१५) श्लीपद रोग - हाथी पगा, एवं (१६) मधुमेह । १. विपाक सूत्र, १ / ७ /९-१० २. आचारांग सूत्र, २/६/९४ ३. प्रथमश्रुत स्कंध ८/१/१७९ (१८३)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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