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- समृद्ध परिवारों में अथवा राजकुलों में बालक की देखभाल के लिए चे कुल की और कुशल दाइयाँ-नाय रहती थीं । यदि वे नहीं मिलती, तो विदेशों से भी बुलाई जाती थी। * लौकिक देवी-देवता
लौकिक देवी-देवताओं का अस्तित्व भारत में अत्यन्त प्राचीन काल से माना जाता है । जैन आगमों में इन्द्र, स्कन्द, रुद्र, मुकुन्द, शिव, वैश्रवण, नाग, आर्य कोट्टकिरिय आदि का उल्लेख उपलब्ध होता है ।
वैदिक साहित्य में तो इन्द्र को अत्यन्त पराक्रमी और सब देवताओं में अग्रणी माना गया है। कल्पसूत्र के अनुसार इन्द्र अपनी आठ इन्द्राणियों-पटरानियों, तीन परिषदों, सात सैन्यों, सात सेनापतियों और अंगरक्षकों से परिवृत्त होकर स्वयं के वैभव का सुख भोग करता है । पौराणिक कथानुसार स्कन्द अथवा कार्तिकेय महादेव के पुत्र
और युद्ध के देवता माने गए हैं । भगवान महावीर के समय स्कन्द पूजा प्रचलित थी। हिन्दू पुराणों में ग्यारह रुद्र माने गए हैं। वे इन्द्र के साथी, शिव और उसके पुत्र के अनुचर और यम के रक्षक बताए गए हैं। स्कन्द और रुद्र की प्रतिमाएँ काष्ठ से बनाई जाती थी।
महाभारत में मुकुन्द अथवा बलदेव को लांगुली अथवा हलधर कहा गया है। हल उसका अस्त्र है । गले में सर्पो की माला पड़ी हुई है और ध्वजा में तीन सिरों के निशान हैं। भगवान महावीर के समय में मुकुन्द अथवा वासुदेव की पूजा प्रचलति थी। हिन्दू पुराणों में शिव अथवा महादेव भूतों के अधिपति, कामदेव संहारकर्ता और स्कन्द के पिता तथा प्रलय के देवता माने गए हैं। पर्वत के देवता के रूप में उनके सम्मानार्थ वैशाख में उत्सव मनाया जाता है । स्कन्द और मुकुन्द की भाँति शिवपूजा भी भगवान महावीर के समय प्रचलित थी।
वैश्रवण अथवा कुबेर को उत्तर दिशा का लोकपाल अधिपति तथा समस्त खजाने का मालिक माना गया है । आगमों में वैश्रवण को यक्षों का अधिपति और उत्तर दिशा का लोकपाल कहा गया है। - ब्राह्मण ग्रंथों के अनुसार नाग- सर्प देवता सामान्यतया पृथ्वी के अन्तस्तल में निवास करते हैं, जहाँ शेषनाग अपने मस्तक पर, फनों पर पृथ्वी का भार सँभाले हुए हैं। आगम एवं उनके व्याख्या ग्रंथों में नागपूजा का उल्लेख मिलता है।
प्राचीन भारत में यक्ष पूजा का बड़ा महत्व था, इसलिए प्रत्येक नगर में यक्षायतन या यक्ष चैत्य होते थे । जैन ग्रंथों में उल्लेख है कि शील का पालन करने से यक्ष योनि
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