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________________ बहन ली जाती थी । पुरुष तो अनेक विवाह कर सकता था, पत्नी के मर जाने या त्याग . देने पर भी दूसरा विवाह करना बुरा नहीं माना जात था, लेकिन विधवा विवाह को तिरस्कार की दृष्टि से देखा जाता था । * संतान के प्रति ममता आगम काल में बच्चों के प्रति विशेष ममता देखने को मिलती है, जो माता बच्चों को जन्म देती है, उन्हें खिलाती पिलाती, उन्हें स्तनपान कराती, उनकी तोतली बोली सुनती और उन्हें अपनी गोद में लेकर उनके साथ क्रीड़ा करती, वे धन्य समझी जाती थीं । वंध्या स्त्री को अच्छा नहीं समझा जाता था । अतएव संतान प्राप्ति के लिए वे इन्द्र, स्कंद, नाग आदि अनेक देवी-देवताओं की पूजा उपासना करती, उन्हें प्रसाद चढ़ाती और अपने बालकों को मालिश करती, उनकी आँखों में काजल लगाती, उनके होंठ रचती, उनके हाथों में कंगन पहनाती तथा खेलने के लिए खेल-खिलौने और खाने के लिए तरह-तरह के व्यंजन उन्हें देती, जिससे कि बालक की पाँचों इन्द्रियाँ परिपूर्ण हो, वह शुभ चिह्नों, लक्षणों, व्यंजनों और सद्गुणों से युक्त हो और वह आकृति से अच्छा व सुन्दर लगे । तौल में पूरा हो और समुचित ऊँचाई में हो, तो वह बालक श्रेष्ठ समझा जाता था । 1 गर्भावस्था में स्त्रियाँ गर्भ की सुरक्षा का बहुत ही मनोयोग पूर्वक ध्यान रखती थी । गर्भवती स्त्रियों की दोहद पूर्ति के लिए पूरा प्रयत्न किया जाता था । पुत्र का जन्म होने पर परिवार में बहुत ही हर्ष मनाया जाता था । राजपुत्र का जन्म होने पर संपूर्ण राज्य में अनेक प्रकार के उत्सव मनाए जाते थे, बस्तुओं के मूल्य घटा दिए जाते थे, कर माफ कर दिए जाते थे । उस अवसर पर नगर को शुल्क और कर रहित करने की घोषणा कर दी जाती थी । पुत्र का जन्म होने पर पहले दिन जातकर्म मनाया जाता था। दूसरे दिन रात्रिजागरण और तीसरे दिन सूर्य-चन्द्र दर्शन का उत्सव मनाया जाता था । बाकी के सात दिन तक गीत-संगीत-नृत्य आदि आनन्द मंगल की धूम मची रहती थी । ग्यारहवें दिन शुभ कर्म होता था । बारहवें दिन स्वजन संबंधियों को आमंत्रित कर भोजन वस्त्रादि से उनका सत्कार किया जाता था और बालक का नामकरण संस्कार होता था। बालक जब घुटनों से चलने लगता, तब परगमण संस्कार, पैरों से चलने पर चंक्रमण संस्कार, वह जब प्रथम भोजन का आस्वादन करता, तब जिमावण संस्कार, पहले पहल जब बोलना सीखता, तब प्रजल्पन संस्कार और जब उसके कान बींधे जाते, तब कर्णवेधन संस्कार मनाया जाता था। इसके बाद वर्षगाँठ, जावलं उतारना, मुंडन, उपनयन, कला ग्रहण आदि संस्कार संपन्न किए जाते थे . (१७०)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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