SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विवाह । प्रचलित विवाह दोनों पक्षों के माता-पिताओं द्वारा आयोजित किया जाता था। साधारणतया अपनी ही जाति में विवाह करने का रिवाज था। इससे वंश शुद्ध रहता था एवं निम्न जातिंगत तत्वों के सम्मिश्रण से कुल की प्रतिष्ठा भंग होने से बच जाती थी । सामान्यतया वर के माता-पिता समान कुल परिवार से ही कन्या ग्रहण करते थे । 1. विवाह के मामले में प्राय: घर के बड़े-बूढ़े एक-दूसरे से सलाह मशविरा करके अपने निर्णय को अपनी संतान से कहते । लड़के का मौन विवाह की स्वीकृति का सूचक माना जाता था । विवाह में कन्या पक्ष दहेज देता था, लेकिन विवाह में वर अथवा उसके पिता द्वारा कन्या के पिता अथवा उसके परिवार को शुल्क देने की भी प्रथा थी । स्त्रियाँ दहेज में अपने साथ बहुत-सा धन-माल लेकर आती थीं । कन्या के माता-पिता भी अपनी शक्ति के अनुसार अनेक प्रकार के आभूषण, वस्त्र, पात्र, वाहन, श्रंगार के साधन, गायें, दास-दासी आदि प्रीतिदान के रूप में वर पक्ष को भेंट करते थे | माता-पिता द्वारा आयोजित विवाह में साधारणतया वर कन्या के घर जाता था । विवाह के अवसर पर मंगल गीत गाए जाते थे । उत्सव के लिए शुभ मुहूर्त एवं शुभ तिथि देखी जाती थी । वर व बारात को बड़े आदर-सत्कार के साथ भोजन-पान कराया जाता था । अग्नि की साक्षी से विवाहोत्सव संपन्न होता था । उक्त प्रकार के आयोजन के सिवाय ऐसे भी अनेक उदाहरण आगमों में उपलब्ध होते हैं, जबकि यौवनावस्था प्राप्त कर लेने पर कन्याएँ सभा में उपस्थित विवाहार्थियों में से किसी एक को अपना पति चुन लेती थी । लेकिन मालूम होता है कि यह प्रथा सामान्य नहीं थी । प्रायः राजा-महाराजा अपनी कन्याओं के लिए स्वयंवर रचाते थे । मध्यम वर्ग के लोगों में संभवत: स्वयंवर प्रथा नहीं थी। कुछ निम्न वर्ग के लोगों में यह प्रथा थी । गांधर्व विवाह में वर-कन्या अपने माता-पिता की अनुमति के बिना ही बिना किसी धार्मिक विधिविधान के एक-दूसरे को पसन्द कर लेते थे । विवाहित या अविवाहित कन्याओं के अपहरण के भी उल्लेख मिलते हैं। इसे लेकर अनेक बार युद्ध 'जाया करते थे । कभी-कभी ऐसा भी होता था कि किसी रूपवती कन्या के सौन्दर्य की प्रशंसा सुनकर राजा लोग कन्या के पिता के पास कन्या की मँगनी के लिए दूत भेजते और यदि कन्या प्राप्त नहीं होती, तो युद्ध हो जाता था । कभी-कभी स्त्री और पुरुष एक-दूसरे के सौन्दर्य और कला कौशल को देखकर परस्पर आकृष्ट हो जाते और यह आकर्षण विवाह में परिणत हो जाता था । ऐसे भी उदाहरण मिलते हैं, जबकि विवाह में अपनी बहन देकर दूसरे की - (१६९)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy