SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 241
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगमों में साधारणतया ब्राह्मणों के प्रति अवगणना का भाव प्रदर्शित किया गया है और क्षत्रियों को श्रेष्ठता प्रदान की गई है, फिर भी समाज में ब्राह्मणों का स्थान ऊँचा था। आगमीय व्याख्या, साहित्य में इनकी प्रशंसा भी देखने को मिलती है । आगमों में श्रमण-समण और ब्राह्मण- माहण शब्द का कितने ही स्थानों में एक साथ प्रयोग किया गया है । इससे यही सिद्ध होता है कि समाज में दोनों को आदरणीय स्थान प्राप्त था । स्वयं भगवान महावीर को भी अनेक प्रसंगों में माहण, महामाहण, महागोप, महासार्थवाह आदि कहकर संबोधित किया गया है । * ब्राह्मण आदि चार वर्णों के कार्य ब्राह्मण- आगमिक व्याख्या ग्रंथों में यह उल्लेख हैं कि ब्राह्मण शिक्षा, व्याकरण, निरूक्त आदि षट् अंगों, चार वेदों, मीमांसा, न्याय, पुराण और धर्मशास्त्र इन चौदह विद्याओं में निष्णात होते थे । अध्ययन–अध्यापन, दान और प्रतिग्रह नामक कर्मों में वे रत रहा करते थे । ब्राह्मणों में यज्ञ-याग का प्रचलन था । उत्तराध्ययन के यज्ञीय नामक अध्ययन में जयघोष मुनि और विजयघोष ब्राह्मण की संवाद आता है। जब जयघोष भिक्षा के लिए विजयघोष के यहाँ उपस्थित हुए, तब जयघोष ने कहा- - वेदों के पारंगत, यज्ञार्थी, ज्योतिष शास्त्र और छह अंगों के ज्ञाता ब्राह्मणों के लिए ही यह भोजन है । यह अन्य किसी को नहीं मिल सकता । इस पर जयघोष ने सच्चे ब्राह्मण का लक्षण बताकर उसे स्वधर्म में दीक्षित किया था । इसके अतिरिक्त ब्राह्मण स्वप्न पाठक होते थे और ज्योतिष विद्या के द्वारा भविष्य बताते थे । राजा लोग पुत्र जन्म के अवसर पर ब्राह्मणों को आमंत्रित कर उनसे भविष्य का व्याख्यान करवाते थे । ब्राह्मणों से पूछकर यह पता लगाया जाता था कि यात्रा के लिए शुभ दिन कौन-सा है और अशुभ दिन कौन-सा है । ब्राह्मण आशीर्वाद पूर्वक मुहूर्त का प्रतिपादन करते थे । समाज में ब्राह्मणों को आदर की दृष्टि से देखा जाता था । आगम ग्रंथों में उल्लेख है कि चक्रवर्ती ब्राह्मणों को प्रतिदिन भोजन करवाते थे । उन्होंने उन्हें जनेऊ से चिह्नित कर अन्य जातियों से पृथक किया था। राजा लोग दान आदि देकर उन्हें सम्मानित करते थे । वे उनके प्रति उदार रहते थे । ब्राह्मणों को उस काल में अन्य विशेषाधिकार भी प्राप्त थे । उन्हें कर देना नहीं पड़ता था और वे फाँसी की सजा से मुक्त थे । निधि आदि का काम होने पर राजा ब्राह्मणों का आदर सत्कार करते थे, जब कि वैश्यों की निधि जब्त कर ली जाती थी । क्षत्रिय- ब्राह्मण ग्रंथों में जैसे ब्राह्मणों का प्रभुत्व प्रदर्शित किया गया है, वैसे (१६६)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy