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ही जैन आगम ग्रंथों में क्षत्रियों का प्रभुत्व प्रदर्शित किया गया है । वे शस्त्र विद्या का अध्ययन करते और युद्ध विद्या में निपुणता प्राप्त करते थे । अपने बाहुबल से देश पर शासन करने का अधिकार वे प्राप्त करते थे । धार्मिक क्षेत्र में भी वे प्रधान माने जाते थे । सभी जैन तीर्थंकारों ने क्षत्रिय वर्ण में जन्म लिया, यह उदाहरण क्षत्रियों की मुख्यता सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है ।
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वैश्य - प्राचीन भारत में इन्हें गृहपति भी कहा जाता था । ये धन-धान्य संपन्न होते थे, जमीन-जायदाद व पशुओं के मालिक होते थे तथा व्यापार द्वारा धन का उपार्जन करते थे । आगमों में ऐसे कितने ही गृहपतियों का उल्लेख है, जो जैन धर्म के अनुयायी थे
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शूद्र- इनकी स्थिति सदैव उपेक्षित एवं दयनीय रही है । भगवान महावीर ने इनकी स्थिति सुधारने का प्रयत्न किया, फिर भी वर्ण और जाति संबंधी प्रतिबंध दूर नहीं किए जा सके । आंगमों में अनेक प्रकार के शूद्रों का उल्लेख है एवं अस्पृश्य समझे जाने वाले मातंग, चांडाल आदि की कथाएँ भी संकलित हैं । जाति जुगुप्सितों
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पाण, डोम और मौरशिच का उल्लेख है । मातंगों को जाति का कलंक माना जाता था । पाणों को चांडाल भी कहा गया है । ये बिना घर-बार के केवल आकाश की छाया में निवास करते थे और मुर्दे ढोने का काम करते थे । डोमों (डूमों) के घर होते थे और वे गीत गाकर एवं सूप बनाकर बेचते और अपनी आजीविका चलाते थे । किविक वाँचों के चारों ओर ताँत लगाते और वध स्थान को ले जाए जाते हुए पुरुषों के सामने बाजा बजाते थे । श्वपच कुत्तों का माँस पकाकर खाते थे और ताँत की बिक्री करते थे। वसड रस्से बँटकर बेचते और अपनी आजीविका चलाते थे । हरिकेश लुहारों की भी शूद्र जाति में गणना की गई है । कर्म और शिल्प से स्पृश्य जातियों में स्त्रीपोषक, मयूरपोषक, कुक्कुट पोषक, नट, शंख, व्याध, मृग, लुब्ध, वागुरिक शौकरिक, रजक आदि की कर्म गुल्मस तथा कर्मकार पटवा, नाई, धोबी आदि की शिल्प में गणना की गई है।.
* श्रेणी संगठन
आगमकालीन श्रेणी संगठन को आज की भाषा में यूनियन कहा जा सकता
है । श्रमिकों और व्यापारियों के संगठन तो थे ही और उनके समय संगठनों के कानून
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कायदे थे । इसके अतिरिक्त बहुत से उत्पादनकर्ता, नट, बाजीगर, गायक आदि के भी संगठन बने हुए थे, जो गाँव-गाँव में परिभ्रमण कर अपनी कला का प्रदर्शन करके अपनी आजीविका चलाते थे । गारुडिक (साँप का विष उतारने वाला) तथा भूतवादी भी एक स्थान से दूसरे स्थान पर गमन करते थे ।
आगमों में संघ के गणों व गच्छों का उल्लेख आता है । गणों में मल्ल,
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