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________________ श्री संघ के अत्याग्रह से इन्होंने श्रीकल्प सूत्र की बालावबोध वार्ता लिखी। यह टीका गुजराती भाषा में और देवनागरी लिपि में सचित्र प्रकाशित है। असल में कल्पसूत्र की यह टीका एक ऐसी कृति है, जिसे उपन्यास की उत्कंठा के साथ पढ़ा जा सकता है । इसमें वे सारी विशेषताएँ हैं जो एक माता में हो सकती है । श्रीमद् का मातृत्व इसमें उभर-उभरकर अभिव्यक्त हुआ है। टीका के प्रारंभ में श्रीमद् ने अपना आकिंचन्य प्रकट करते हुए लिखा है-हुँ मंदमति, मूर्ख, अज्ञानी, महाजड़ छतां पण श्रीसंघ नी समझ दक्ष थई ने आ कल्पसूत्रनी व्याख्या करवानु साहस करु छु, व्याख्यान करवाने, उजमाल थयो छु, ते सर्व श्री सद्गुरुगम नो प्रसाद अने चतुर्विध श्री संघ- सांनिध्यपणुं जाणवु जेम अन्य शासन मां कहेलुं छे के श्री रामचंद्रजीनी सेना ना वांदराए म्होटा म्होटा पाषाण लई ने समुद्र मां नाख्या ते पथरा पेति पण तर्या अने लोको ने पण तार्या ते कई पाषाण नो तथा समुद्र नो तथा वांदराओ नो प्रताप जाणवो नहीं, परंतु ते प्रताप श्रीरामचंद्रजी नो जाणवो केम के पत्थर नो तो एवो स्वभाव छे के जे पोते पण बूड़े अने आश्रय लेनार ने पण बूड़ाडे तेम हुं पण पत्थर सदृश छतां श्री कल्पसूत्र नी व्याख्या करुं छु, तेमां माहरो काई पण गुण जाणवो नहीं। मुनि धर्मसिंह ने भी कल्पसूत्र की लोकभाषा टीका लिखी है निशीथ सूत्र- इसकी नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि और लोकभाषा टीका इन चार प्रकार के व्याख्या ग्रंथों के प्रमाण उपलब्ध हैं। इसकी नियुक्ति तो आचारांग नियुक्ति की अंगरूप है, लेकिन वर्तमान में निशीथ भाष्य में समाविष्ट रूप में उपलब्ध है । भाष्य में लगभग ६५०० गाथाएँ हैं। १. जब श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरि से कल्पसूत्र' की बालावबोध टीका करने का निवेदन किया गया, तब उन्होंने यही कहा था कि पण्डित ज्ञान विमल सूरि की आठ ढाल वाली टीका है, अतः अब इसे और सुगम करने की आवश्यकता नहीं है। इस पर श्री संघ की ओर से आए हुए लोगों ने कहा- श्री पज्य ! इस ग्रंथ में थविरावली तथा साधसमाचारी नहीं है। अतः एक व्याख्यान कम है तथा अन्य बातें भी संक्षेप में कही गई है । अतः यह ग्रंथ अधूरा है । कहा भी है कि जो ज्ञान अधूरा है, वह ज्ञान नहीं है, जो आधा पढ़ा है, वह पढ़ा हुआ नहीं है, अधूरी रसोई रसोई नहीं है, अधूरा वृक्ष फलता नहीं है, अधूरे वृक्ष में पके फल की भाँति स्वाद नहीं होता, इसलिए सम्पूर्णता चाहिए। आप महापुरुष हैं, परम उपकारी हैं । अतः श्रीसंघ पर कृपा दृष्टि करके हम लोगों की अर्जी कबूल कीजिए । (प्र.पृ. ६)। इसे सुनकर श्रीमद् ने श्रावकों के माध्यम से ४-५ ग्रंथगारों से काफी प्राचीन लिखित चूर्णि, नियुक्ति, टीकादि की दो चार शुद्ध प्रतियाँ प्राप्त की और कल्पसूत्र की बालावबोध टीका का सूत्रपात किया। - श्री कल्पसूत्रस्य बालावबोधिनी वार्ता : एक अध्ययन डॉ. नेमीचंद जैन (१५१)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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