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________________ अभिधान राजेन्द्र कोशकार विजय राजेन्द्र सूरिजी महाराज ने भी एक दशाश्रुत स्कंध चूर्णि लिखी है, जो अप्रकाशित है। मुनि धर्मसिंह कृत लोकभाषा टीका अप्रकाशित है। उपाध्याय श्री आत्मारामजी ने ‘दशाश्रुत स्कंध' गणपति गुण प्रकाशिका नाम से हिन्दी में व्याख्या लिखी है, जो जैन शास्त्रमाला कार्यालय लाहौर से सन् १९३६ में प्रकाशित हुई थी। इसी दशाश्रुत स्कंध के आठवें अध्ययन का नाम ‘कल्पसूत्र' भी है। यह अध्ययन एक स्वतंत्र ग्रंथ बन गया है । इस पर जितने व्याख्या ग्रंथ लिखे गए हैं, उतने संभवतः अन्य किसी ग्रंथ पर नहीं लिखे गए हैं। इसके नियुक्ति, चूर्णि, संस्कृत टीका और लोकभाषा अनुवाद प्रकाशित हुए हैं और प्रकाशित हो रहे हैं। .. नियुक्ति और चूर्णि का तो मूल ग्रंथ के प्रसंग में उल्लेख किया जा चुका है और संस्कृत टीकाओं में से कल्पसूत्र कल्प प्रदीपिका टीका विजय सेन सूरि के शिष्य संघ विजय गणि ने वि.स. १६७४ में लिखी और विक्रम संवत् १६८१ में कल्याण विजय सूरि और धन विजय गणि ने इसका संशधन किया । वृत्ति का ग्रंथमान ३२५० श्लोक प्रमाण है। - कल्पसूत्र सुबोधिका टीका वृत्ति रामविजय के शिष्य श्री विजय के अनुरोध पर तपागच्छीय कीर्ति विजय गणि के शिष्य जिन विजय उपाध्याय ने वि.स. १६९६ में लिखी है एवं भाव विजय ने संशोधन करके उसे शुद्ध किया है । टीका सरल एवं सुबोध है । ग्रंथमान ५४०० श्लोक प्रमाण है। . कल्पसूत्र कल्पकौमुदी वृत्ति तपागच्छीय मुनि धर्मसागर गणि के प्रशिष्य एवं श्रुतसागर गणि के शिष्य शांतिसागर गणि ने वि.स. १७०७ में लिखी है । यह शब्दार्थ प्रधान है एवं इसका ग्रंथमान ३७०० श्लोक प्रमाण है । प्रारंभ में वर्धमान जिनेश्वर को नमस्कार किया गया है और अंत में वृत्ति रचना के समय, स्थान आदि का निर्देश किया गया है । प्रशस्ति में तपागच्छ प्रवर्तक जगच्चंद्र सूरि से लगाकर शांतिसागर तक की परंपरा के गुरु शिष्यों की गणना दी है। कल्पसूत्र टिप्पणक आचार्य पृथ्वीचंद्र सूरि ने तैयार किया है । ये देवसेन गणि के शिष्य थे। देवसेन गणि के गुरु यशोभद्र सूरि थे। __ अभिधान राजेन्द्र कोशकार श्री राजेन्द्र सूरिजी ने कल्पसूत्रार्थ प्रबोधिनी के नाम से संस्कृत भाषा में कल्पसूत्र की व्याख्या की है । कल्पसूत्र की इतनी सरल, विस्तृत और रोचक टीका दूसरी नहीं है । गद्य कवीना निकषं इस टीका में सही अर्थ में सिद्ध हुआ है। (१५०)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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