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'साधर्मिक' और 'विहार' शब्द का निक्षेप पद्धति से विवेचन किया है । इनमें से किसके लिए कितने निक्षेप हो सकते हैं, उनकी जानकारी दी है । तृतीय उद्देश में गण धारण की इच्छा करने वाले भिक्षु की योग्यता अयोग्यता का निरूपण किया है । वर्णन की पद्धति निक्षेप प्रधान है । प्रवर्तिनी के गणों का वर्णन करते हुए साध्वियों की दुर्बलताओं का भी चित्रण किया है। चतुर्थ उद्देश में मुख्य रूप से साधुओं के विहार विषयक विधि-विधान का वर्णन है । पंचम उद्देश में साध्वियों के विहार के नियमों पर प्रकाश डाला गया है । प्रवर्तिनी आदि विभिन्न पदों को दृष्टि में रखते हए विविध विधानों का निरूपण किया गया है । षष्ठ उद्देश में आहार शुद्धि के कल्प्य, अकल्प्य संबंधी विचारों, अगीतार्थ साधुओं के साथ संयोग संबंधों व दुष्कर्म विषयक प्रायश्चितों का संकेत किया है । आहार शुद्धि के कल्प्य-अकल्प्य के बारे में बताया है कि साधु को अपने संबंधी के यहाँ से आहार आदि ग्रहण करने की इच्छा होने पर अपने से वृद्ध-स्थविर आदि की आज्ञा लिए बिना वैसा करना अकल्प्य है । सप्तम उद्देश में साध्वियों के आचार विषयक नियमोंपनियमों का विचार किया गया है। अष्टम उद्देश में शयनासन व आहार करने के बारे में संकेत किया है। नवम उद्देश में मुख्य रूप से साधुओं की विविध पडिमाओं का विवेचन हैं । दशक उद्देश में यवमध्य प्रतिमा और वज्रमध्य प्रतिमा की विधि पर विशेष रूप से विचार किया गया है । पाँच प्रकार के व्यवहार का विस्तृत विवेचन करते हुए बाल दीक्षा की विधि तथा दस प्रकार की सेवा का और उससे होने वाली महानिर्जरा का भी निरूपण है । अन्त में तीन प्रकार की स्थविर भूमि, तीन प्रकार की शैक्षक भूमि, आठ वर्ष से कम आयु वाले की दीक्षा का निषेध, आचार प्रकल्प (निशीथ) तथा सूत्रकृत आदि अन्य सूत्रों के अध्ययन की योग्यता आदि का विचार किया गया है।
आंधार्य मलयगिरि ने मूल सूत्र, नियुक्ति एवं भाष्य के आधार से व्यवहार विवरण नाम से बृहत टीका संस्कृत में लिखी है । टीका में उन्हीं बातों का विस्तार से वर्णन है, जिनका भाष्य में निरूपण किया गया है। प्रारंभ में नेमिनाथ भगवान, अपने गुरु और चूर्णिकार को नमस्कार करके विवरण लिखने की प्रतिज्ञा की है। विवरण का ग्रंथमान ३४६२५ श्लोक प्रमाण है । लोकभाषा टीका मुनि धर्मसिंह ने लिखी है, पर वह अप्रकाशित है। - बृहत्कल्प-आचार्य भद्रबाहु (द्वितीय) ने इसकी निर्युक्त लिखी है । यह नियुक्ति स्वतंत्र रूप में नहीं, अपितु भाष्य मिश्रित अवस्था में प्राप्त होती है । इसमें सर्व प्रथम तीर्थंकर भगवंतों को नमस्कार किया गया है। उसके बाद ज्ञान के विविध भेदों का
१. आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा और जीत ये व्यवहार के पाँच भेद हैं।
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