________________
निर्देश है और कहा है कि ज्ञान और मंगल में कथंचित भेदाभेद है । मंगल के नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव ये चार प्रकार है । इस प्रकार मंगल का निक्षेप पद्धति से व्याख्यान करने के साथ ज्ञान के भेदों की चर्चा की गयी है । इसी प्रकार नियुक्ति विधा के अनुसार अन्यान्य विशेष शब्दों का निक्षेप पद्धति से विचार किया गया है । जैसेताल, प्रलंब, ग्राम, नगर, खेट, कर्वरक, यडम्ब, पत्तन, निवेश, संबाध, उपाधि, चर्मकल्प, कंटक आदि।
बृहत्कल्प पर लघु और बृहत् ये दो भाष्य लिखे गये हैं। लेकिन बृहद्भाष्य अपूर्ण उपलब्ध है, जिसमें पीठिका और प्रारंभ में दो उद्देश्य पूर्ण है और तीसरा अपूर्ण ।
बृहत्कल्प लघुभाष्य के प्रणेता संघदास गणि क्षमा श्रमण है। उसमें सूत्र के पदों का विस्तृत विवेचन किया गया है और उसे छह उद्देशों में विभक्त किया है. प्रारंभ में ८०५ गाथाओं की एक सुविस्तृत पीठिका है । नामत: लघु भाष्यं होते हुए भी इसमें ६४९० गाथाएँ हैं । इस भाष्य में प्राचीन भारत की कुछ महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक सामग्री भी सुरक्षित है । उसका अर्वाचीन लेखक अपने लेखन कार्य में उपयोग करते हैं। जैसा कि डॉ. मोतीचंद ने अपनी पुस्तक ‘सार्थवाह' (प्राचीन भारत की पथं प्रद्धति) में सार्थवाह का परिचय देने की दृष्टि से इस भाष्य का उपयोग किया है।
पीठिका में विशेषावश्यक भाष्य की भाँति प्रारंभिक गाथाओं में मंगलाचरण की चर्चा की है। ‘मंगल' पद के निक्षेप, मंगलाचरण का प्रयोजन, आदि मध्य और अंत में 'मंगल' करने की विधि आदि विषयों की चर्चा करने के बाद नंदी-ज्ञानपंचक का विवेचन किया है। प्रत्येक उद्देश में विवेचनीय विषयानुसार सूत्रों का वर्गीकरण करके उसके अनुसार विषय का प्रतिपादन किया है । संक्षेप में बहत्कल्प लघभाष्य के परिचय में इतना ही कहा जा सकता है कि इसमें जैन साधु-साध्वियों, श्रमण-श्रमणियों के आचार-विचार का अत्यंत सूक्ष्म और सतर्क विवेचन किया गया है। कुछ ऐसे भी स्थल हैं, जो मनोवैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है । साथ ही इसमें तत्कालीन भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनीतिक आदि परिस्थितियों पर प्रकाश डालने वाली सामग्री भी प्रचुरता से उपलब्ध होती है, जो इतिहासवेत्ताओं एवं सांस्कृतिक अध्ययन करने वालों को मार्गदर्शन का काम करती है। __ बृहत्कल्प चूर्णि मूलसूत्र और लघुभाष्य के आधार पर लिखी गई है। उसकी भाषा संस्कृत मिश्रित प्राकृत है । चूर्णि में भी भाष्य की तरह पीठिका और छह उद्देश एवं भाष्य के भावों का विस्तार करने के साथ-साथ कहीं-कहीं तात्विक विषयों की भी चर्चा की गई है। ग्रंथ में प्रणेता का नाम नहीं होने से लेखक के नाम का निर्धारण करना शक्य नहीं है । ग्रंथमान ५३००० श्लोक प्रमाण है। ..
(१४८)