SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०. महानिग्रंथीय-श्रेणिक और अनाथी मुनि के बीच हुई सनाथता-अनाथता विषयक मार्मिक विचार चर्चा । २१. समुद्रपालीय-चंपानगरी के श्रावक पालित का चरित्र । उसके पुत्र समुद्र पाल को-एक चोर की दशा देखकर उत्पन्न हुआ वैराग्य भाव, उसका त्याग और उसकी अडिग तपस्या का वर्णन। २२. रथनेमीय- भगवान अरिष्टनेमि का पूर्वभव, उनके दीक्षा लेने आदि का मार्मिक चित्रण तथा सती राजीमती का अभिनिष्क्रमण, रथनेमि और राजीमती का एकान्त में अकस्मात् मिलन, रथनेमि का कामातुर होना, राजीमती की अडिगता, रथनेमि को उपदेश देकर संयम में स्थिर करना, स्त्री शक्ति का ज्वलन्त दृष्टान्त । २३. केशी गौतमीय- श्रावस्ती नगरी में भगवान पार्श्वनाथ की परंपरा के श्रमण केशी और गौतम गणधर का मिलन, दोनों के बीच तात्विक प्रश्नोत्तर, केशी श्रमण का भगवान महावीर के द्वारा प्ररूपित आचार का ग्रहण । २४. प्रवचन माता-आठ प्रवचन माताओं का विस्तृत विवेचन (पाँच समिति और तीन गुप्ति ये आठ प्रवचन माता है)। २५. यज्ञीय- याजक कौन? यज्ञ कौन सा? अग्नि कैसी होनी चाहिए? ब्राह्मण किसे कहते हैं? वेद का असली रहस्य, सच्चा यज्ञ, जातिवाद का खण्डन, कर्मवाद का मण्डन, श्रमण, मुनि, तपस्वी किसे कहते हैं ? संसार रूपी रोग की सच्ची चिकित्सा सच्चे उपदेश का प्रभाव। . .. २६. समाचारी- भिक्षु, साधु की दिनचर्या का वर्णन । २७. खलुंकीय- गर्गाचार्य का साधु जीवन, कुशिष्यों को गलियार बैलों की उपमा, स्वच्छंदता का दुष्परिणाम, गर्गाचार्य का शिष्यों को त्यागकर निरासक्त भाव से एकान्तं स्थान में साधना में लीन होकर आत्मकल्याण करना । २८. मोक्षमार्गीय- मोक्षमार्ग के साधनों का वर्णन, तत्वों का लक्षण आदि । .२९. सम्यक्त्वपराक्रम-जिज्ञासा की सामान्य भूमिका से लेकर अंतिम साध्य (मोक्ष) प्राप्ति तक होने वाली समस्त भूमिकाओं का तीन-तीन बोलों में वर्णन।। ३०. तपोमार्ग- तपश्चर्या का विभिन्न दृष्टियों से निरीक्षण, तपश्चर्या के विभिन्न प्रकार के प्रयोगों का वर्णन और उनका शारीरिक-मानसिक प्रभाव । ३१. चरणविधि- एक से लेकर तैंतीस संख्या तक की वस्तुओं का वर्णन किया गया है। इनमें जो सदैव उपयोग रखता है, वह भिक्षु संसार परिभ्रमण नहीं करता। (१०५)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy