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________________ १०. द्रुमपत्रक- वृक्ष के पत्ते से मनुष्य जीवन की तुलना, जीवनोत्क्रांति का क्रम, मनुष्य जीवन की दुर्लभता, भिन्न-भिन्न स्थानों में भिन्न-भिन्न आयु का परिमाण, अप्रमत्त रहने का उपदेश आदि। ११.बहश्रत पूजा-ज्ञानी और अज्ञानी के लक्षण, सच्चे ज्ञानी की मनःस्थिति. ज्ञान का सुन्दर परिणाम, ज्ञानी की सर्वोच्च उपमा। १२. हरिकेशीय-जातिवाद का खण्डन, जातिभेद का दुष्परिणाम, तपस्वी की त्याग दशा, शुद्ध तपश्चर्या का प्रभाव, सच्ची शुद्धि किसमें है १३. चित्त संभूतीय-संस्कृति और जीवन का संबंध, स्नेह का आकर्षण, चित्त और संभूत इन दोनों भाइयों के पूर्व भव का इतिहास, छोटी सी वासना के लिए योग, पुनर्जन्म क्यों, प्रलोभन के निमित्त मिलने पर भी त्यागी की दशा, चित्त और संभूत का परस्पर मिलन, चित्त मुनि का उपदेश, संभूति का न मानना निदान का दुष्परिणाम, संभूति का घोर दुर्गति में जाकर पड़ना। १४. इषुकारीय-छह साथी जीवों का वृत्तांत और इषुकार नगर में उनका पुनः इकट्ठा होना, संस्कार की स्फूर्ति, परंपरागत मान्यताओं का जीवन पर प्रभाव, गृहस्थाश्रम किसलिए, सच्चे वैराग्य की कसौटी आत्मा की नित्यता का मार्मिक वर्णन, अन्त में पुरोहित के दोनों पुत्रों, पुरोहित और उसकी पत्नी, इषुकार राजा और रानी इन छहों जीवों का एक दूसरे के निमित्त से संसार का त्याग और मोक्ष प्राप्ति। १५. सभिक्षु-आदर्श भिक्षु का हृदयग्राही वर्णन। १६. ब्रह्मचर्य- मन, वचन, काया से शुद्ध ब्रह्मचर्य कैसे पाला जा सकता है, इसके लिए दस हितकारी वचन, ब्रह्मचर्य की आवश्यकता, ब्रह्मचर्य पालन का फल आदि का विस्तृत विवेचन। १७. पापश्रमणीय- पापी श्रमण का स्वरूप, श्रमण जीवन को दूषित करने वाले सूक्ष्मातिसूक्ष्म दोषों का विवेचन । १८. संयतीय-कंपिलपुर नगर के राजा संयति का शिकार के लिए उद्यान में जाना, अपने शौक के लिए पश्चाताप, गर्दभाली मुनि के उपदेश का प्रभाव, संयति राजा का गृहत्याग, संयति तथा क्षत्रिय मुनि का समागम, जैन शासन की उत्तमता, शुद्ध अन्तःकरण से पूर्व जन्म का स्मरण होना, अनुपम विभूति धारक महापुरुषों का संयम धारणकर आत्म कल्याण करना। १९. मृगापुत्रीय- सुग्रीव नगर के युवराज मृगापुत्र को मुनि दर्शन से वैराग्य भाव की उत्पत्ति, पुत्र का कर्त्तव्य, माता-पिता का वात्सल्य भाव, दीक्षा के लिए आज्ञा प्राप्त करते समय उसकी तात्त्विक चर्चा, पूर्व जन्मों में भोगे हुए दुःखों की वेदना का वर्णन, आदर्श त्याग, संयम स्वीकार कर सिद्धि प्राप्त करना। (१०४)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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