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अवग्रह विषयक सूत्रों पर प्रकाश डाला है कि जिस दिन कोई श्रमण वसति का त्याग करें और उसी दिन दूसरे श्रमण आए, तो एक दिन तक पहले श्रमणों का उस पर अधिकार कायम रहता है । अवग्रह प्रमाण प्रकृत सूत्र में बताया है कि साधु-साध्वियों को चारों ओर से सवा वर्ग योजन का अवग्रह रखकर ग्राम, नगर आदि में रहना कल्प्य
चतुर्थ उद्देश के प्रारंभिक सूत्रों में गुरु प्रायश्चित योग्य कार्यों में गुरु प्रायश्चित योग्य कार्यों को बताया है। इसी प्रकार के अन्य श्रमण योग्य कार्यों के विधान का उल्लेख किया है।
पंचम उद्देश में ब्रह्मचर्य रक्षा संबंधी और ब्रह्मचर्य खण्डित होने पर किस दोष के लिए कौन-सा प्रायश्चित लेना पड़ता है, इसका और आहार संबंधी बातों आदि का विचार किया गया है।
___षष्ठ उद्देश में बीस सूत्र हैं। इसमें बताया गया है कि साधु-साध्वियों को अपना वाणी व्यवहार कैसा रखना चाहिए। उन्हें निम्नलिखित छह प्रकार के वचन नहीं बोलने चाहिए
१. अलीक वचन, २. हीलित वचन, ३. खिसित वचन, ४. परुष वचन, ५. गार्हस्थिक वचन और ६. व्यवशमितोदीरण वचन (पुनः कलह उत्पन्न करने वाले वचन)।
कल्प के विशुद्धिमूलक छह प्रस्तार (प्रायश्चित की रचना विशेष) है । वे इस प्रकार हैं-प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, अविरतिका अथवा अब्रह्म (मैथुन) और अपुरुष-नपुंसक और दास का आरोप लगाने वाले से संबंधित वचन प्रयोगों का प्रायश्चित।
साधु को यदि पैर में काँटा आदि लग जाए या आँख में मच्छर, कचरा आदि गिर जाए और वह उसे निकालने में असमर्थ हो, तो साध्वी निकाल सकती है। इसी प्रकार साध्वी के पैर में काँटा आदि लगने पर आँख में कचरा आदि गिर जाने की स्थिति में भी समझना चाहिए । साध्वी के डूबने, गिरने, फिसलने आदि का मौका आने पर साध्वी को साधु और साधु के वैसा मौका आने पर साधु को साध्वी इस प्रकार एक दूसरे को पकड़कर निकाल कर बचा सकते हैं। विक्षिप्तचित्त साध्वी को साधु हाथ पकड़कर उसके स्थान पर पहुँचा दे, तो उसे कोई दोष नहीं लगता। इसी प्रकार दीप्तचित्त साध्वी को भी साधु हाथ पकड़कर उसके स्थान पर पहुँचा सकता है। साध्वाचार के छह व्याघातक, छह प्रकार की कल्पस्थिति का भी वर्णन किया गया है । इस प्रकार बृहत्कल्प सूत्र के इस संक्षिप्त परिचय से यह स्पष्ट हो जाता है कि
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