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५. सूर्य प्रज्ञप्ति
सूर्य प्रज्ञप्ति पाँचवा उपांग आगम है। इसमें १७८ सूत्रों में सूर्य की गति, स्वरूप, प्रकाश आदि विषयों का वर्णन किया गया है। यह उत्कालिक सूत्र है और इसमें बीस अधिकार है, जिन्हें प्राभृत नाम दिया गया है। इन प्राभृतों का वर्णन गौतम गणधर और भगवान महावीर के प्रश्नोत्तरों के रूप में हैं। विषयों का क्रम निम्नलिखित अनुसार है
प्रथम प्राभृत में आठ प्रतिप्राभृत (उपाधिकार) है । उनमें से पहले में सूर्यमंडल का परिमाण, दूसरे में मंडल का संस्थान, तीसरे में मंडल का क्षेत्र, चौथे में ज्योतिषियों में परस्पर अन्तर, पाँचवें में द्वीप आदि में गति का अन्तर, छठे में दिन और रात में ग्रहों का स्पर्श, सातवें में मंडलों का संस्थान और आठवें में मंडलों का परिमाण बताया है ।
दूसरे प्राभृत के तीन प्रतिप्राभृतों में से पहले में तिरछी गति का परिमाण, दूसरे में मंडल संक्रमण और तीसरे में मुहूर्त में गति के परिमाण का प्रतिपादन किया गया
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तीसरे प्राभृत में क्षेत्र का परिमाण, चौथे प्राभृत में क्षेत्र का संस्थान, पांचवे प्राभृत में लेश्या (ताप) का प्रतिघात, छठे प्राभृत में सूर्य के प्रकाश का वर्णन, सातवें प्राभृत में प्रकाश का संकोच और आठवे प्राभृत में उदय और अस्त का परिमाण बताया गया है। नौवें प्राभृत में यह बताया गया है कि सूर्य के उदय और अस्त के समय उनसाठ पुरुष प्रमाण छाया दिखायी देती है । इन प्राभृतों में अनेक मतान्तरों का उल्लेख है ।
दसवें प्राभृत में बाईस प्रतिप्राभृत है, जिनका वर्ण्य विषय इस प्रकार है- १. नक्षत्रों का योग, २. नक्षत्रों की मुहूर्त गति, ३. नक्षत्रों का दिशा गमन, ४. युगादि में नक्षत्रों के साथ योग, ५. कुल और उपकुल नक्षत्र, ६. पौर्णिमा और अमावश्या तथा नक्षत्र, नक्षत्र निकालने की विधि, बारह अमावस्याओं के नक्षत्र अमावस्या के कुलादि नक्षत्र और पाँच संवत्सरों की अवस्थाएं, ७. नक्षत्रों का सन्निपात, ८. नक्षत्रों के संस्थान, ९. नक्षत्रों में तारों की संख्या, १०. अहोरात्र में पूर्ण नक्षत्र, नक्षत्रों के दिन और माह, ११. चंद्र का नक्षत्र मार्ग, सूर्य मण्डल के नक्षत्र, सूर्यमंडल से ऊपर के नक्षत्र, १२. नक्षत्रों के अधिष्ठाता, १३. तीस मुहूर्तों के नाम, १४. तिथियों के नाम, १५. तिथि निकालने की विधि, १६. नक्षत्रों के गोत्र, १७. नक्षत्रों में भोजन, १८. चंद्र और सूर्य की गति, १९. बारह महीनों के नाम, २०. पाँच संवत्सरों का वर्णन, २१. चारों दिशाओं के नक्षत्र और २२. नक्षत्रों का योग, भोग और परिणाम ।
ग्यारहवें प्राभृत में सवत्सर के आदि और अंत का वर्णन है । बारहवें प्राभृत
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