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में संवत्सर का परिमाण, पाँच संवत्सर के महीने, दिन और मुहूर्त, पाँच संवत्सरों के संयोग से छब्बीस भांगे, ऋतु और नक्षत्रों का परिणाम, चन्द्र नक्षत्र के शेष रहने पर आवृत्ति आदि की जानकारी है । तेरहवें प्राभृत में चन्द्र की वृद्धि और अपवृद्धि का वर्णन है। चौदहवें प्राभृत में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष का, पन्द्रहवें प्राभृत में ज्योतिषियों की शीघ्र और मंद गति, नक्षत्र मास, चन्द्र मास, ऋतु मास और आदित्य मास में चलने वाले नक्षत्रों की संख्या आदि का वर्णन है । सोलहवें प्राभृत में उद्योत के लक्षण बताये हैं । सतरहवें प्राभृत में चन्द्र और सूर्य के च्यवन के विषय में जानकारी है । अठारहवें प्राभृत में ज्योतिषियों की ऊँचाई बतायी गयी है और उन्नीसवें प्राभृत में चन्द्र और सूर्य की संख्या बतायी गयी है । इसी प्रकार अन्तिम बीसवें प्राभृतं में चन्द्र और सूर्य का अनुभाव, ज्योतिषियों के भोग की उत्तमता के लिए दृष्टान्त और अठासी ग्रहों के नाम आदि का प्रतिपादन किया गया है ।
६. जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति
छठा उपांग आगम जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति है । यह छठे आगम ज्ञाता धर्मकथा का उपांग माना जाता है । गौतम गणधर और भगवान महावीर के प्रश्नोत्तर के रूप में यह ग्रंथ रचित है । इसमें कुल एक सौ छिहत्तर सूत्र है । यह कालिक सूत्र है । अनेक स्थानों पर त्रुटित होने के कारण इसकी पूर्ति जीवाभिगम आदि के पाठों से की गयी हैं । इसमें जंबूद्वीप में रहे हुए भरत आदि क्षेत्र, वैताढ्य आदि पर्वत, पद्म आदि छत्तीस सरोवर, गंगा आदि नदियाँ, ऋषभ आदि कूट तथा तीर्थंकर ऋषभदेव और भरत चक्रवर्ती का वर्णन विस्तार से है । ज्योतिषी देव तथा उनके सुख आदि भी बताये हैं ।
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इस ग्रंथ का प्रारंभ इस प्रकार किया गया है- “ मिथिला नगरी में राजा जितशत्रु राज करता था । धारिणी उसकी रानी थी। एक बार मिथिला नगरी के मणिभद्र चैत्य में भगवान महावीर का समवसरण हुआ । उस समय उनके ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति गौतम गणधर ने जंबूद्वीप के विषय में प्रश्न किये, जिनका उचित उत्तर भगवान महावीर ने दिया.... ।”
इसके दस अधिकार हैं । उनके वर्ण्य विषय इस प्रकार हैं
पहले अधिकार का नाम भरत क्षेत्राधिकार है । इसमें जंबूद्वीप का संस्थान व जगती द्वारों के अन्तर हैं। भरत क्षेत्र, वैताढ्य पर्वत व ऋषभकूट का वर्णन है।
दूसरे अधिकार में काल का वर्जन है । उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी काल और व्यवहार काल का गणित के अनुसार एक सौ अठानबे अंकों तक का गणित, पहले, दूसरे और तीसरे आरे का वर्णन, भगवान ऋषभदेव का वर्णन, निर्वाण महोत्सव चौथे, पांचवे और छठे आरे का वर्णन और उत्सर्पिणी काल का वर्णन हैं ।
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