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________________ संस्थान तथा लंबाई-चौड़ाई, ज्योतिषी विमान उठानेवाले देवों का विस्तार. शीघ्र व मंद गति, हीनाधिक ऋद्धि, वैमानिक देवों व देवियों का विस्तार आदि बातों का उल्लेख किया गया है। नरक भूमियों के वर्णन के प्रसंग में निम्नलिखित बातों का भी उल्लेख किया गया है- सोलह प्रकार के रत्न, अस्त्रों-शस्त्रों के नाम, धातुओं आदि के नाम आदि। ___ जंबूद्वीप के एकोस नामक द्वीप में विविध कल्प वृक्षों का वर्णन करते हुए निम्नलिखित विषयों का भी उल्लेख है- मद्य के नाम, पात्रों (बर्तनों) के नाम, आभूषणों के नाम, भवन आदि के नाम, वस्त्रों के नाम, दासों के प्रकार त्यौहार के नाम, उत्सवों के नाम, नट आदि के नाम, यानों के नाम, अनर्थ के नाम, कलह के प्रकार, युद्ध के नाम, रोगों के नाम आदि। ___चौथी प्रतिपत्ति में बताया गया है कि संसारी जीव एकेन्द्रिय आदि पंचेंद्रिय पर्यन्त पाँच प्रकार के होते हैं । पाँचवी प्रतिपत्ति में बताया गया है कि पृथ्वीकाय आदि के भेद से संसारी जीव छह प्रकार के होते हैं। निगोद दो प्रकार के होते हैं- निगोद. और निगोद जीव । छठी प्रतिपत्ति में बताया है कि संसारी जीव सात प्रकार के होते हैं । सातवीं प्रतिपत्ति में संसारी जीवों का आठ प्रकारों की अपेक्षा से वर्णन किया है । आठवी प्रतिपत्ति में बताया है कि संसारी जीव नौ प्रकार के होते हैं । नौवी प्रतिपत्ति में जीवों का सिद्ध-असिद्ध, ऐन्द्रिय-अनिन्द्रिय, ज्ञानी-अज्ञानी, आहारक-अनाहारक, भाषक- अभाषक, सम्यग्दृष्टि-मिथ्यादृष्टि, परीत्त-अपरीत्त, पर्याप्तक-अपर्याप्तक, सूक्ष्य बादर, संज्ञी-असंज्ञी, भवसिद्धिक-अभवसिद्धिक, योग, वेद, दर्शन, संयत-असंयत, कषाय, ज्ञान, शरीर, काय, लेश्या, योनि, इन्द्रिय आदि की अपेक्षा से वर्णन किया गया ४. प्रज्ञापना- प्रज्ञापना चौथे अंग आगम समवायांग का उपांग माना जाता हैं, यद्यपि दोनों की विषयवस्तु में कोई समानता नहीं है । नंदीसूत्र में प्रज्ञापना की गणना अंगबाह्य आवश्यक व्यतिरिक्त उत्कालिक श्रुत में की गयी है । इसमें तीन सौ उनचास सूत्र हैं । जैसे अंगों में भगवती सूत्र सब से बड़ा है, वैसे ही उपांगों में प्रज्ञापना सब से बड़ा है। इसके कर्ता वाचक वंशीय पूर्वधारी आर्य श्यामाचार्य है, जो सुधर्मास्वामी की तेईसवीं पीढ़ी में उत्पन्न हुए थे । वे वीर निर्वाण के तीन सौ छिहत्तर वर्ष बाद मौजूद समवायांग में जीव-अजीव, स्वसमय-परसमय, लोक-अलोक आदि विषयों का एक-एक पदार्थ की वृद्धि करते हुए सौ पदार्थों का वर्णन है । उन्हीं विषयों का वर्णन प्रज्ञापना में विशेष रूप से किया या है । आगमों में द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, (८४)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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