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________________ *३. जीवाभिगम सूत्र इसे जीवाजीवाभिगम सूत्र भी कहते हैं । यह तीसरे अंग स्थानांग का उपांग है। इसमें भगवान महावीर और गौतम गणधर के प्रश्नोत्तर के रूप में जीव और अजीव के भेद प्रभेदों का विस्तार से वर्णन है । इसमें नौ प्रकरण और दो सौ बहत्तर सूत्र हैं । प्रकरण के लिए यहाँ प्रतिपत्ति शब्द का प्रयोग किया गया है । इनमें से तीसरी प्रतिपत्ति अन्य सब की अपेक्षा बड़ी है । इसके टीकाकार आचार्य मलयगिरि ने अनेक स्थानों पर वाचनाभेद व विच्छिन्न होने का भी संकेत किया है। दूसरी प्रत्तिपत्ति में तीन वेद के भेद-प्रभेद, स्त्रीवेद की स्थिति के विविध प्रकार, स्त्रीवेद के अन्तर व अल्पबहुत्व, स्त्रीवेद मोहनीय कर्म की स्थिति, पुरुषवेद की स्थिति, अन्तर, पाँच प्रकार का अल्पबहुत्व, कर्म स्थिति व विषय, नपुंसक वेद के बारे में भी पूर्वोक्त सभी बातें, तीनों वेदों को मिलाकर आठ प्रकार का अल्प बहुत्व आदि की जानकारी है। . तीसरी प्रतिपत्ति में चार प्रकार के जीव, चार गतियों के भेद-प्रभेद, नरकों के नाम, गोत्र, पिंड आदि, नारकों के क्षेत्रादि की वेदना का दृष्टान्तपूर्वक वर्णन, सातों नरकों के पाथड़ों की अलग-अलग अवगाहना और उनमें रहने वाले नारकी जीवों की स्थिति, नारकों के विषय में विविध वर्णन, तिर्यंचों के भेद-प्रभेद तथा विशेष भेद, अनगार, अवधि और लेश्या के लिए प्रश्नोत्तर, एक समय में दो क्रियाएँ मानने वाले अन्य तीथिको का मत, अन्तर्वीप के मनुष्यों का अधिकार, कर्मभूमिज मनुष्यों का अधिकार, भवनपति देवों का सविस्तार वर्णन, व्यन्तर ज्योतिष्क देवों का वर्णन, असंख्यात द्वीप समुद्रों और जंबूद्वीप का वर्णन, जंबूद्वीप के परकोटे का वर्णन, विजय द्वार, विजया राजधानी, विजय देवों और जंबूद्वीप के शेष तीनों द्वारों का वर्णन, उत्तर कुरु तथा यमक पर्वत, उत्तर कुरु के नीलवन्त आदि द्रहों का वर्णन, कंचनगिरि पर्वत का वर्णन, जंबू सुदर्शन वृक्ष का विस्तार, जंबूद्वीप में चंद्र-सूर्य आदि की संख्या, लवण समुद्र का अधिभार पाताल कलशों का वर्णन, शिखाचित्र व नागदेव का अधिकार गोस्तूम पर्वत तथा वेलंधर, अनुवेलंधर राजा का वर्णन, सुस्थित देव व गौतम द्वीप का वर्णन, चंद्र व सूर्य के द्वीप का अधिकार, द्वीप समुद्रों के नाम, ढाई द्वीप के बाहर ज्योतिषी देव, लवण समुद्र संबंधी प्रश्नोत्तर, धातकी खंड द्वीप, कालोदधि समुद्र, पुष्कर द्वीप और मानुषोत्तर पर्वत का वर्णन, मनुष्यलोक का शाश्वतत्व, इन्द्र के च्यवन का अधिकार, अनेक द्वीप समुद्रों एवं अंतिम स्वयंभूरमण समुद्र का वर्णन, अलग-अलग समुद्रों के पानी का स्वाद, उनके मत्स्यों का वर्णन, द्वीप समुद्रों की गणना का प्रमाण व परिमाण, इन्द्रियों के विषय, मेरु व उसका समभूमि से अन्तर, अभ्यन्तर तथा बाह्य नक्षत्र, चंद्र विमान का (८३)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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