SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मोहबंध, कर्मवेद, नरक व स्वर्गगमन आदि विषयक संशय व प्रश्न और समाधान, सुशील स्त्री व रसत्यागी का वर्णन, उनके लिए प्रश्नोत्तर, तापस, कान्दर्पिक, साधु-संन्यासी, अबंड परिव्राजक, दृढ़ प्रतिज्ञा, प्रत्यनीक साधु, तिर्यंच सात निह्नव, श्रावक, साधु व केवली विषयक प्रश्नोत्तर इत्यादि विषय हैं। सिद्धान्ताधिकार में केवली समुद्घात, मुक्त आत्माओं के विषय में प्रश्नोत्तर, सिद्धों का वर्णन, सिद्धों के सुख का प्रमाण व स्वरूप इत्यादि वर्णन है। * २ राजप्रश्नीय यह दूसरे अंग आगम सूत्रकृतांग का उपांग है। इसे सूत्रकृतांग का. उपांग मानने का कारण यह है कि जैसे सूत्रकृतांग में क्रियावादी, अक्रियावादी आदि तीन सौ तिरसठ पाखंडी मतों का वर्णन है, वैसे ही इसमें राजा प्रदेशी ने, जो अक्रियावाद को माननेवाला था, केशी श्रमण से जीव विषयक प्रश्न किये थे । अक्रियावाद का वर्णन सूत्रकृतांग में है। उसी का दृष्टान्त द्वारा विशेष वर्णन किया गया है । यह उत्कालिक सूत्र है। यह पूर्वार्द्ध और उत्तारार्द्ध इन दो भागों में विभाजित है और इसमें २१७ सत्र हैं। पहले भाग में सूर्याभदेव का भगवान महावीर के समक्ष उपस्थित होकर विविध नाटक व नृत्य करना आदि का विस्तार से वर्णन है और दूसरे भाग में यह ऋषि वैभव उसे क्यों प्राप्त हुआ, गौतम गणधर के इस प्रश्न के उत्तर में भगवान महावीर ने उसके पूर्वभव में हुए भगवान पार्श्वनाथ के प्रमुख शिष्य केशीश्रमण और श्रावस्ती के राजा प्रदेशी के जीव विषयक संवाद का वर्णन है । राजा प्रदेशी जीव और शरीर को अभिन्न मानता है और केशी श्रमण उसके मत का खंडन करते हुए जीव के स्वतंत्र अस्तित्व को सप्रमाण सिद्ध करते है और अन्त में उनके उपदेश को सर्वात्मना श्रद्धापूर्वक ग्रहण कर आत्म साधना में लगकर जीवनान्त में शरीर त्याग कर वह सौधर्म देवलोक में सूर्याभदेव हुआ। वह वहा से च्यव कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर मोक्ष प्राप्त करेगा। _ औपपातिक सूत्र की भाँति इस ग्रंथ का प्रारंभ आमलकप्पा नगरी के वर्णन से हुआ है । यह वर्णन चंपा नगरी के वर्णन से मिलता जुलता है । इस समग्र वर्णन में राजा प्रदेशी और केशी कुमार श्रमण के अतिरिक्त राजा जितशत्रु, आमलकप्पा नगरी के राजा सेय और उसकी रानी धारिणी, राजा प्रदेशी की रानी सूर्यकान्ता व पुत्र सूर्यकान्त, चित्त सारथी आदि व्यक्तियों तथा स्थानों में आमलकप्पा नगरी के अतिरिक्त श्रावस्ती, श्वेतांबिका आदि नगरियों एवं केकय देश, कुणाल देश आदि का वर्णन है । इस वर्णन से तत्कालीन लोकजीवन, नगर रचना, राजा-प्रजा, देश की स्थिति, सामाजिक व्यवस्था, रीति-रिवाज आदि का भली भाँति ज्ञान हो अता है।
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy