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________________ * ८. अन्तकृद्दशा आठवां अंग अन्तकृद्दशा हैं। अन्तकृत का अर्थ है-संसार का अन्त करने वाले । याने संसार रूपी समुद्र का अन्त करके मोक्ष प्राप्त करने वाले जीवों को अन्तकृत कहते हैं । इस आगम में ऐसे जीवों का वर्णन होने से इसका नाम सार्थक हैं । अन्तकृत दशा में एक श्रुतस्कंध और आठ वर्ग हैं। इसका उपोद्घात भी विपाक सूत्र से मिलता-जुलता है। दिगंबर परंपरा के तत्वार्थ राजवार्तिक आदि ग्रंथों में अन्तकृतों के जो नाम बतलाए हैं, वे स्थानांग में उल्लिखित नामों से मिलते-जुलते हैं । स्थानांग में दस नाम इस प्रकार हैं-नमि, मातंग, सोमिल, रामगुप्त, सुदर्शन, जमाली, भगाली, किंकष, चिल्वक्क और फाल अंबडपुत्र । समवायांग में अन्तकृद्दशा के दस अध्ययन और सात वर्ग तथा नंदी में दस अध्ययन और आठ वर्ग बताए हैं, किन्तु नामों का उल्लेख दोनों में नहीं है। वर्तमान अन्तकृद्दशा में न तो दस अध्ययन है और न ही उक्त नाम वाले अन्तकृतों का वर्णन है। उपलब्ध आगम के प्रथम वर्ग में निम्नोक्त दस अध्ययन हैं-गौतम, समुद्र, सागर, गंभीर, स्तिमित, अचल, कांपिल्य, अक्षोभ, प्रसेनजिन और विष्णु । ये सब राजा अंधकवृष्णि के पुत्र थे और इनकी माता का नाम धारिणी था । सबने दीक्षा लेकर बारह वर्ष पर्यन्त संयम पालन किया और अन्त समय में केवली होकर मोक्ष प्राप्त किया। गौतम अध्ययन में द्वारिका नगरी का वर्णन है, जहाँ कृष्ण वासदेव राज करते थे। इसमें नगर की शोभा का बड़ा सुन्दर वर्णन किया, गया है। इसी नगरी के राजा अंधकवृष्णि थे। दसरे वर्ग में आठ अध्ययन हैं, जिनमें क्रमशः अक्षोभ, सागर, समुद्रविजय, हिमवन्त, अचल पूरण और अमीचंद का वर्णन है। इन आठों के पिता का नाम अंधकवृष्णि और माता का नाम धारिणी रानी था। ये आठों सोलह वर्ष की दीक्षा पर्याय का पालन करके मोक्ष गए। तीसरे वर्ग में तेरह अध्ययन हैं, जिनमें एक-एक अन्तकृत्त की जीवनी है। उनके नाम इस प्रकार हैं-अनीकसेन, अनन्तसेन, अजितसेन, आनहितरिपु देवसेन, शुभसेन, सारण, गजसुकुमाल, सुमुख दुर्मुख, कुबेर, दासक, अनादृष्टि । प्रथम छह कुमारों के माता-पिता का नाम महेंद्रपुर नगर निवासी सुलसा और नाग गाथापति है। इन्होंने बीस-बीस वर्ष तक दीक्षा पालन कर मोक्ष प्राप्त किया। सारण के पिता का नाम वसुदेव और माता का नाम धारिणी था। ये बीस वर्ष संयम का पालन कर मोक्ष पधारे। (६८)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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