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रक्तपट- रक्त (लाल) पट-लाल वस्त्रधारी परिव्राजक ।
द्वितीय श्रुतस्कंध में धर्मकथाओं के द्वारा धर्म का स्वरूप बतलाया गया है। इसमें दस वर्ग हैं । इन वर्गों में चमरेंद्र, बलीन्द्र, धरणेन्द्र, पिशाचेन्द्र, महाकालेन्द्र, शक्रेन्द्र, ईशानेन्द्र की पटरानियों, इन्द्राणियों के पूर्व भवों का वर्णन है । उनके जो नाम यहाँ दिए हैं, वे सब पूर्व भव के नाम हैं । इस प्रकार उनके मनुष्य भव के ही नाम यहाँ पर भी चलते हैं। कुल मिलाकर दो सौ छह पटरानियों के दो सौ छह अध्ययन इन वर्गों में
इन कथाओं में भी अनेक घटनाओं, विविध शब्दों एवं विभिन्न वर्णनों से प्राचीनकालीन अनेक बातों का पता लगता है । प्राचीन समाज व्यवस्था की जानकारी के लिए ये कथाएँ विशेष उपयोगी हो सकती हैं। *७. उपासक दशांग
इस सातवें अंग उपासक दशा में भगवान महावीर के दस उपासकों-श्रावकों की कथाएँ हैं। इस अंग का उपोद्घात भी विपाक सूत्र के ही समान हैं । दस श्रावकों के नाम इस प्रकार हैं-१. आनन्द, २. कामदेव, ३. चुलनीपिता, ४. सुरादेव, ५. चुलणीशतक, ६. कुण्डकोलिक, ७. शकडाल पुत्र, ८. महाशतक, ९. नंदिनी पिता और १०. सालिहीपिता अथवा सालेपिकापिता। ___स्थानांग में ये नाम बताए हैं, लेकिन कुछ प्राचीन हस्तप्रतियों में नामान्तर भी देखने को मिलते हैं। जैसे सालेपिकापिता के बजाय लंतियापिया, लत्तियपिया, लतिणीपिया, लेतियापिया आदि नाम भी उपलब्ध होते हैं । इसी तरह नंदिनी पिता के स्थान पर ललितांकपिया, सालेइणीपिया नाम प्राप्त होते हैं । समवायांग और नंदी सूत्र में अध्ययनों की संख्या का निर्देश किया गया है, किन्तु नामों का निर्देश नहीं किया गया है।
भगवान महावीर के श्रावक वर्ग में ये दस श्रावक मुख्य रूप से गिने गए हैं। प्रत्येक अध्ययन में एक श्रावक का वर्णन है । इनमें श्रावकों के नगर, उद्यान, वनखंड, भगवान के समवसरण, राजा, माता-पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलौकिक पारलौकिक ऋद्धि, भोग, भोगों का परित्याग, बारह व्रत तथा उनके अतिचार, पंद्रह कर्मादान, पडिमा, उपसर्ग, संलेखना, भक्त प्रत्याख्यान, पादोपगमन, स्वर्गगमन आदि विषयों का बहत विस्तार के साथ वर्णन किया गया है । इन श्रावकों की निग्रंथ प्रवचन में दृढ़ श्रद्धा थी। नोट :-ज्ञाता धर्म कथा के दूसरे श्रुतस्कंध के दस वर्गों की कथाओं के नामों की जानकारी के लिए देखिए-जैन सिद्धांत बोल संग्रह भाग-४ पृष्ठ १८६ से १९०
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