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________________ अमरकंका के राजा और द्रौपदी की कथा, इंद्रिय विषयों में लिप्तता से होने वाले अनर्थों को समझाने के लिए आकीर्ण जाति के घोड़े का दृष्टान्त, संयमी जीवन के लिए शुद्ध और निर्दोष आहार निर्ममत्व भाव से करने के लिए सुषमा कुमारी का दृष्टान्त, उत्कृष्ट भाव से पालन किए गए अल्पकालिक संयम का अत्युपकार बताने के लिए पुण्डरीक का दृष्टान्त इन दृष्टान्त कथाओं में प्रसंगवश किसी-किसी में अवान्तर कथाएँ भी हैं । इन दृष्टान्त कथाओं में ऐसे अनेक विशिष्ट शब्द हैं, जो तत्कालीन राजकीय सामाजिक व्यवस्था का बोध कराते हैं । कुछ कथाएं ऐसी हैं, जो धर्मान्तरों के ग्रंथों में भी मिलती I हैं । जैसी रोहिणी की कथा है, वैसी ही कथा बाइबिल के नए करार में मॅथ्यू की किताब में और ल्युक के संवाद में भी उपलब्ध होती हैं । कुछ कथाओं से दूसरे धर्मों के विधि विधानों और क्रियाकाण्डों की जानकारी मिलती है । जैसे पाँचवें अध्ययन में आगत शुक परिव्राजक की कथा में वैदिक कर्मकाण्ड का थोड़ा-सा परिचय दिया है । पन्द्रहवीं नंदीफल की दृष्टान्त कथा में विभिन्न मतानुयायी संन्यासियों का उल्लेख मिलता है । वह इस प्रकार है 1 चरक - त्रिदण्डी अथवा कौपीनधारी तापस । चरक -गली में पड़े हुए चीथड़ों के कपड़े बनाकर पहनने वाले संन्यासी । चर्मखण्डिक - चमड़े के वस्त्र पहनने वाले या चमड़े के उपकरण रखने वाले संन्यासी । जैसे । भिच्छंड- भिक्षुक या बौद्ध भिक्षुक । पंडुदग- शरीर पर भस्म लगाने वाले अर्थात् शिवभक्त संन्यासी । गौतम - अपने साथ बैल रखने वाले संन्यासी । गोवती - गोव्रत रखने वाले संन्यासी । रघुवंश में वर्णित राजा दिलीप के गृहिधर्मी - गृहस्थाश्रम को श्रेष्ठ मानने वाले । धर्मचिन्तक - धर्मशास्त्र का अध्ययन करने वाले । अविरुद्ध - किसी के साथ विरोध न रखने वाले । विनयवादी, सर्वधर्म समन्वयवादी । विरुद्ध - परलोक अथवा समस्त मतों के साथ विरोध रखने वाले संन्यासी । वृद्ध- वृद्धावस्था में संन्यास लेने में विश्वास रखने वाले संन्यासी । श्रावक - धर्म का श्रवण करने वाले संन्यासी । (६५)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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