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________________ विषयों के बारे में चर्चा है । जैन दर्शन में इंद्रिय, बल, आयु और श्वासोच्छवास इन चार प्राणों को व्यवहार नय से जीव का लक्षण कहा गया है। भौतिक विज्ञान से भी इसकी पुष्टि होती हैं । जीवन धारण के लिए वायु एक आवश्यक तत्व है । अन्य शतकों में इस प्रकार की चर्चा है । विस्तार से जानने के लिए इस ग्रंथ का अवलोकन और पठन करना चाहिए । 1 1 इस आगम में कुछ बातें बार-बार आई हैं। उनके लिए स्थान, पृच्छक और काल का भेद कारण है । ग्रंथ के अंत में गुणविशाल संघ का स्मरण करते हुए श्रुतदेवता की स्तुति की गई है । अंत में गौतमादि गणधरों को नमस्कार किया गया है और कुछ देवियों का स्मरण किया गया है। संभवतः इसका संबंध प्रतिलिपिकार से हैं 1 * ६. ज्ञाता धर्म कथा यह छठा अंग है । इसका उपोद्घात विपाक सूत्र के उपोदघात के समान है । इसके दो श्रुतस्कंध हैं - ज्ञाता और धर्मकथा । पहले में ज्ञाता - उदाहरण रूप उनतीस अध्ययन हैं तथा उनमें एक-एक कथा है और अंत में उस कथा या दृष्टान्त से मिलने वाली शिक्षा बतलाई गई है । कथाओं में नगर, उद्यान, प्रासाद, भवन, समुद्र, स्वप्न आदि का वर्णन है । इन दृष्टान्त कथाओं में शुद्ध सम्यक्त्व की रक्षा, इंद्रिय विजय, भूल का पश्चाताप, आराधक धर्म की आराधना और विराधना का फल, विषय सुख के कटु फल आदि का उपदेश दिया गया है । उनतीस अध्ययनों में कथाएँ क्रमशः इस · प्रकार हैं मेघकुमार, धन्ना सार्थवाह और विजय चोर, शुद्ध सम्यक्त्व के लिए अण्डे का दृष्टान्त, इंद्रियों को वश में रखने या स्वच्छन्द छोड़ने के विषय में कछुए का दृष्टान्त, भूल के लिए पश्चाताप करके पुनः संयम में दृढ़ होने के लिए शैलक राजर्षि का दृष्टान्त, आत्मा का गुरुत्व और लघुत्व दिखाने के लिए तुंबे का दृष्टान्त, आराधक, विराधक के लाभालाभ बताने के लिए रोहिणी की कथा, भगवान मल्लिनाथ की कथा, कामभोगों में आसक्ति और विरक्ति के लिए जिनपालित और जिनरक्षित का दृष्टान्त, प्रमादी, अप्रमादी के लिए चाँद का दृष्टान्त, धर्म की आराधना और विराधना के लिए वृक्ष का दृष्टान्त, सद्गुरु सेवा के लिए उदकशुद्धि का दृष्टान्त, सद्गुरु के अभाव में गुणों की हानि बताने के लिए दर्दुर (नंदमणियार) का दृष्टान्त, धर्म प्राप्ति के लिए अनुकूल सामग्री की आवश्यकता बताने के लिए तेतलीपुत्र का दृष्टान्त, वीतराग के उपदेश से ही धर्मप्राप्ति होने के लिए नंदीफल का दृष्टान्त, विषय सुख का कटुक फल बताने के लिए नोट- व्याख्या प्रज्ञप्ति के इकतालीस शतकों और उनके उद्देश्यों में वर्णित विषयों के उल्लेख के लिए देखिए-जैन सिद्धांत बोल संग्रह भाग ४ पृष्ठ १३८ से १८५ (६४)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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