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________________ वैसे देखा जाए तो इस सूत्र में कुछ स्थानों पर अन्य तीर्थंकों के भी प्रश्न है । इसमें श्रावकों द्वारा की गई चर्चा भी आती है और श्राविका के रूप में एकमात्र जयन्ती श्राविका की ही चर्चा दिखाई देती है । लेकिन मुख्य रूप से गणधर गौतम प्रश्नकर्ता है और उत्तरदाता भगवान महावीर है। इन प्रश्नों में गौतम गणधर की उग्र जिज्ञासा वृत्ति का परिचय मिलता है। उनकी जिज्ञासा सिर्फ आत्मा और परमात्मा के संबंध में ही नहीं, किन्तु दृश्य जगत के प्रत्येक पदार्थ के संबंध में भी है । कोई भी घटना विषय या प्रसंग हो, जो उनके सामने आया, उसके रहस्य को जानने के लिए वे विनयपूर्वक प्रश्न करते–'कहमेयं भंते' और कभी-कभी उस उत्तर की गहराई में जाकर प्रति प्रश्न भी करते–'केणटेणं भंते' ऐसा किसलिए कहा जाता है ? यद्यपि गौतम के प्रश्न, चर्चा एवं संवादों का विवरण इतना विस्तृत है कि उसका वर्गीकरण करना कठिन है। फिर भी संक्षेप में उन प्रश्नों को चार वर्गों में बाँटा जा सकता है-१. अध्यात्म विषयक, २. कर्मफल विषयक, ३. लोक विषयक और ४. स्फुट विषयक। प्रथम वर्ग में कुछ प्रश्न इस प्रकार के माने जा सकते हैं-आत्मा की शाश्वतता, अशाश्वतता, सामयिक ज्ञान का फल, आत्मा का गुरुत्व-लघुत्वशील और श्रुत आदि । द्वितीय वर्ग में सुख-दुःख के निमित्त आदि की चर्चा । तृतीय वर्ग में लोक एवं जीव, परमाणु की शाश्वतता, अशाश्वतता, अस्तित्व, नास्तित्व आदि के प्रश्न। चतुर्थ.वर्ग विभिन्न स्फुट विषयों का है, जिसमें उन्माद, उपाधि, तीर्थ और तीर्थंकर आदि के प्रश्न किए जा सकते हैं। सारांश यह है कि इन प्रश्नोत्तरों में स्वसमय, परसमय, स्व पर समय, जीव, अजीव, जीवाजीव, लोक, अलोक, लोकालोक आदि की चर्चा के साथ भिन्न-भिन्न जाति के देवों, राजाओं आदि का वर्णन है। कुछ ऐसे भी तथ्य हैं, जो तत्कालीन समाज व राज्य व्यवस्था पर प्रकाश डालने वाले होने से ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। व्याख्या प्रज्ञप्ति के इस सामान्य परिचय के अनन्तर उसके कुछ महत्रपूर्ण उल्लेखों का निर्देश करते हैं। जैसे कि-समग्र लोक किसके आधार पर रहा हुआ है ? गौतम के इस प्रश्न के उत्तर में भगवान ने बताया है कि आकाश के आधार पर वायु, वायु के आधार पर समुद्र, समुद्र के आधार पर पृथ्वी तथा पृथ्वी के आधार पर समस्त त्रस एवं स्थावर जीव रहे हुए हैं । समस्त अजीव जीवों के आधार पर रहे हुए हैं । लोक का ऐसा आधार-आधेय भाव है । यह किस आधार से कहा जा सकता है? इस प्रश्न के उत्तर में एक उदाहरण दिया है । वह इस प्रकार है- एक बड़ी मशक में . (६१)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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