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________________ * ११. विपाक सूत्र इस आगम में पुण्य-पाप के सुख-दुःखादि रूप विपाक का वर्णन है। दोनों जैन परंपराएँ इसके वर्ण्य विषय को एक जैसा मानती है। * १२. दृष्टिवाद यह बारहवाँ अंग अनुपलब्ध है, अतः इसका पूरा परिचय दिया जाना संभव नहीं है । फिर भी नंदीसूत्र में इसका जो परिचय दिया गया है, वह इस प्रकार है इसमें एक श्रुतस्कंध है, चौदह पूर्व हैं, संख्यात वस्तु अध्ययन विशेष, संख्यात चूलिका वस्तु, संख्यात प्राभृत, संख्यात प्राभृत-प्राभृत, संख्यात प्राभृतिकाएँ और संख्यात प्राभृतिका प्राभृतिकाएँ हैं । यह परिमाण में संख्यात पद सहस्त्र है। अक्षर संख्यात और अनन्त .गम अर्थ है। अनन्त पर्याय है। इसमें त्रस स्थावर जीवों, धर्मास्तिकाय आदि शाश्वत पदार्थों एवं क्रियाजन्य पदार्थों का परिचय है । इस प्रकार जिन प्रणीत समस्त भावों का निरूपण इस बारहवें अंग में उपलब्ध है, दृष्टिवाद का अध्ययन करने वाला तद्प आत्मा हो जाता है । भावों का यथार्थ ज्ञाता और विज्ञाता बन जाता है। यद्यपि यह बाहरवाँ अंग भद्रबाहु के समय से ही नष्ट प्राय है, परंतु उत्तरवर्ती काल के श्वेताम्बर व दिगंबर परंपराओं के ग्रंथों में दृष्टिवाद के पाँच-पाँच अधिकारों का उल्लेख करके उनके भेद-प्रभेद एवं तद्गत घर्ण्य विषयों का जो संकेत दिया है, उससे प्रतीत होता है कि उनके सामने श्रुति परंपरा से दृष्टिवाद के बारे में कुछ न कुछ जानकारी अवश्य उपलब्ध थी । अन्यथा सर्वथा अप्राप्त वस्तु का वर्णन कैसे हो सकता है ? नंदीसूत्र में पाँच अधिकारों का नाम इस प्रकार बताए हैं-परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत, अनुयोग और चूलिका। धवला में भी यही नाम है, लेकिन अनुयोग के स्थान पर प्रथमानुयोग शब्द प्रयुक्त हुआ है । अनेक ग्रंथकारों ने अपने-अपने ग्रंथों के कुछ वर्ण्य विषयों को पूर्वगत बताया है । अतः इन कतिपय सांकेतिक बिन्दुओं से संतोष करना होगा कि बारहवाँ दृष्टिवाद आगम अनुपलब्ध अवश्य है, लेकिन उसका अल्पतम अंश विभिन्न आचार्यों ने अपने ग्रंथों में सुरक्षित रखकर उसकी महत्ता का आभास कराया है। इस प्रकार यहाँ प्राचीन ग्रंथों के आधार से अंग आगमों के परिचय का संकेत किया गया है। उसके अनुसार उपलब्ध आगमों में भी वर्ण्य विषय है या नहीं और है तो किस रूप में ? आदि की जानकारी आगामी अध्याय में दी जा रही है। (४३) .
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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