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________________ आएगी और श्रमण धर्म की नींव भी उतनी ही दृढ़ बनेगी। श्रावक वर्ग में सदाचार और सदविचार की प्रतिष्ठा करना इसका उद्देश्य है। * ८. अन्तकृत दशा यह आठवाँ अंग आगम है । अन्तकृत अर्थात् संसार का अन्त करने वाला। अर्थात् जिन्होंने अपने संसार भयचक्र, जन्म-मरण का अंत किया है, जो पुनः जन्म मरण के चक्र में फँसने वाले नहीं हैं, ऐसे जीवों का वर्णन जिसमें हो, वह अन्तकृत दशांग है। दिगंबर परंपरा में भी अन्तकृत दशा का यही आशय लिया गया है । राजवार्तिक आदि दिगंबर ग्रंथों में अन्तकृतों के जो नाम हैं, वे स्थानांग में उल्लिखित नामों से अधिकांशतया मिलते-जुलते हैं। * ९. अनुत्तरोपपातिक दशा नव ग्रैवेयक विमानों के ऊपर विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित एवं सर्वार्थ सिद्धि ये पाँच अनुत्तर विमान है। ये विमान सब देव विमानों में सर्वश्रेष्ठ हैं । इनसे श्रेष्ठतर अन्य विमान नहीं है । जो व्यक्ति अपने तप एवं संयम द्वारा इन विमानों में उपपात अर्थात् जन्म ग्रहण करते हैं, उन्हें अनुत्तरोपपातिक कहते हैं। इस आगम में इसी प्रकार के मनुष्यों की दशाओं का वर्णन है । दिगंबर परंपरा के ग्रंथों में भी इसका यही वर्ण्य विषय माना गया है। इसमें कथाओं के माध्यम से आचार-विचार के सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है। * १०. प्रश्नव्याकरण इस दसवें अंग आगम का परिचय श्वेताम्बर और दिगंबर दोनों परम्पराओं के ग्रंथों में मिलता है । समवायांग में बताया गया है कि प्रश्न व्याकरण में १०८ प्रश्न, १०८ अप्रश्न और १०८ प्रश्राप्रश्न है, जो मंत्र विद्या एवं अंगुष्ठ प्रश्न, बाहु प्रश्न, दर्पण प्रश्न आदि विद्याओं से संबंधित है । इसमें पैंतालीस अध्ययन हैं । नन्दी सूत्र में भी प्रश्नों आदि की संख्या १०८, १०८ बताई है तथा कहा है कि इसमें अंगुष्ठ प्रश्न, बाहुप्रश्न, आदर्श प्रश्न आदि विचित्र विद्यातिशयों का वर्णन है । नागकुमारों व सुपर्ण कुमारों के साथ मुनियों के दिव्य संवाद हैं और पैंतालीस अध्ययन है । राजवार्तिक में इसका वर्ण्य विषय युक्ति और नयों द्वारा अनेक आक्षेप और विक्षेप रूप प्रश्नों का उत्तर देना बताया है । इस वर्णन से ऐसा मालूम होता है कि इस अंग में सुप्रश्न, कुप्रश्न, निमित्त विज्ञान आदि का संग्रह किया गया होगा। (४२)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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