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________________ * ३-४. स्थानांग - समवायांग 1 अंग आगमों में विशेषतः उपदेशात्मक एवं मुमुक्षुओं के लिए विधि निषेध परक वचन दिखाई देते हैं । कुछ में तो ये वचन सीधे रूप में और कुछ में कथाओं, संवादों एवं रूपकों के माध्यम से व्यक्त किए गए हैं। लेकिन स्थानांग - समवायांग में ऐसे वचनों का विशेष अभाव है। इन दोनों सूत्रों के अध्ययन से प्रतीत होता है कि ये कोष हैं । अन्य आगमों की अपेक्षा इनके नाम और विषय सर्वथा भिन्न प्रकार के हैं इन अंगों की विषय निरूपण शैली से यह स्पष्ट होता है कि स्मृति और धारणा की सुविधा के लिए अथवा विषयों की खोज की सरलता को दृष्टि में रखकर इन आगम ग्रंथों की रचना की गई है। इसीलिए स्थानांग में एक-एक, दो-दो आदि के रूप से पदार्थों का वर्णन है और समवायांग में जीवादि पदार्थों का यथावस्थित रूप में सम्यक प्रकार से निर्णय करने के लिए सब पदार्थों का समानता रूप समवाय किया है और जो-जो विषय जिस-जिस में गर्भित हो सकते हैं, उनका निरूपण है । ५. व्याख्या प्रज्ञप्ति यह पाँचवाँ अंग प्रविष्ट आगम है और व्याख्या प्रधान है। इसमें जीव, अजीव, जीवाजीव, स्वसमय, परसमय, स्व-पर- समय, लोक, अलोक, लोकालोक आदि की विविध रूप से व्याख्या की गई है। संक्षेप में हम यों कह सकते हैं कि जीव है या नहीं, आदि प्रश्नों के उत्तर दिए जाने से इसका नाम सार्थक है । * ६. ज्ञाता धर्म कथा · प्रस्तुत अंग आगम में अनेक आख्यानों और उपाख्यानों के द्वारा ऐसी सत् शिक्षा दी गई है कि जिनके पढ़ने, सुनने से पाठक या श्रोता का मन धर्म में प्रवृत्त हो जाता है । इस अंग में तत्कालीन समाज, राज्य आदि से संबंधित अनेक विषयों का उल्लेख होना स्वाभाविक है । ७. उपासक दशा अन्य आगमों में तो प्रधानतः श्रमणाचार का ही निरूपण है, लेकिन उपासक दशा ही एक ऐसा आगम है, जिसमें गृहस्थ धर्म से संबंधित वर्णन किया गया है। इससे पता लगता है कि श्रावक के आचार, अनुष्ठान आदि का क्या रूप होना चाहिए । श्रमणाचार की तरह श्रावकाचार का भी महत्व है। क्योंकि श्रमण वर्ग को अपनी साधना के अनुरूप साधन उपलब्ध न हो, तो श्रमण धर्म टिक नहीं सकता । श्रावक वर्ग: जितना सदाचारी और न्याय नीतिनिष्ठ होगा, तदनुरूप श्रमण वर्ग में सबलता (४१)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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