________________
चौदह पूर्वों में से एकाध पूर्व को छोड़कर दोनों परंपराओं में शेष पूर्वों की पद संख्या में समानता है । पूर्वों की पद संख्या इस प्रकार है—
१. उत्पाद - एक करोड़ पद ।
२. अग्रायणीय- छियानवे लाख पद ।
३. वीर्य प्रवाद - सत्तर लाख पद ।
४. अस्ति नास्ति प्रवाद- साठ लाख पद । ५. ज्ञान प्रवाद - एक कम एक करोड़ पद । ६. सत्य प्रवाद- एक करोड़ छह पद ।
७. आत्म प्रवाद - छब्बीस करोड़ पद ।
९. कर्म प्रवाद - एक करोड़ अस्सी हजार पद ।
[कर्म प्रवाद पूर्व के दिगंबर परम्परानुसार एक करोड़ अस्सी लाख पद हैं ।] ९. प्रत्याख्यान - चौरासी लाख पद ।
१०. विद्यानुवाद- एक क्नरोड़ दस लाख पद ।
११. अवंध्य - छब्बीस करोड़ पद ।
(दिगंबर परंपरा में 'अवंध्य' के स्थान पर 'कल्याण' शब्द प्रयुक्त किया गया
१२. प्राणायु - एक करोड़ छप्पन लाख पद ।
[‘प्राणायु' के स्थान पर दिगंबर परंपरा में 'प्राणवाद' शब्द प्रयुक्त हुआ है तथा इसका पदं परिमाण तेरह करोड़ पद है ।]
१३. क्रिया विशाल - नौ करोड़ पद ।
१४. लोक बिन्दुसार - साढ़े बारह करोड़ पद ।
ऊपर जो श्वेताम्बर और दिगंबर दोनों परंपराओं के ग्रंथों के अनुसार अंग आगमों का परिमाण बताया गया है, वह हजारों से लेकर लाखों तक की संख्या में है, लेकिन वर्तमान में जिस रूप में ये अंग ग्रंथ उपलब्ध है, उनका करीब चार सौ वर्ष पूर्व लिखे गए 'बृहट्टिपनिका' नामक ग्रंथ से निम्नलिखित श्लोक परिमाण ज्ञात होता है ।
आचारांग - २५२५, सूत्र कृतांग २१००, स्थानांग ३६००, समवायांग १६६७, व्याख्या प्रज्ञप्ति (भगवती) १५७५२ (इकतालीस शतक युक्त), ज्ञाता धर्म कथा ५४००, उपासक दशा ८१२, अन्तकृद्दशा ८९९, अनुत्तरोपपातिक दशा १९२, प्रश्न व्याकरण १२५६, विपाक सूत्र १२१६ । इन समस्त अंगों की कुल श्लोक संख्या का योग ३५३३९ है 1
१. भांडारकर ओरिएंटल रिसर्च इन्स्टीट्यूट के वॉल्युम १७ भाग १ - ३ में भी आगमों की पदपरिमाण
(३५)